भारत और वियतनाम के खरीदार अफ्रीका के कच्चे काजू (Raw Cashew Nuts) के लिए इतनी तीव्र प्रतिस्पर्धा क्यों करते हैं?
1️⃣ अफ्रीका उत्पादन केंद्र, भारत-वियतनाम प्रसंस्करण केंद्र।
बेनीन, आइवरी कोस्ट, गिनी-बिसाऊ और तंज़ानिया जैसे देश उच्च गुणवत्ता के काजू पैदा करते हैं, परंतु बड़ी प्रसंस्करण इकाइयाँ नहीं हैं। भारत और वियतनाम अपनी तकनीक और श्रमशक्ति से बाजार में अग्रणी हैं।
2️⃣ वैश्विक मांग बढ़ रही है।
अमेरिका, यूरोप और मध्य पूर्व में प्लांट-बेस्ड स्नैक्स और काजू दूध की लोकप्रियता बढ़ रही है। इसलिए प्रसंस्करण के लिए निरंतर कच्चे माल की मांग बनी रहती है — और यह केवल अफ्रीका पूरी कर सकता है।
3️⃣ समय और लॉजिस्टिक्स की जंग।
अलग-अलग क्षेत्रों में फसल कटाई का समय भिन्न होता है। जो खरीदार जल्दी सौदे करता है, वही लाभ में रहता है। इसीलिए बेनीन, घाना और आइवरी कोस्ट के बंदरगाहों पर भारतीय और वियतनामी एजेंटों के बीच कंटेनरों की “जंग” होती है।
4️⃣ मुद्रा और मूल्य नीति।
वियतनामी खरीदार तेज़ भुगतान और प्रतिस्पर्धी कीमतों से सौदे जीतते हैं; भारतीय खरीदार लंबे संबंध और लचीले भुगतान विकल्पों से लाभ उठाते हैं।
5️⃣ भविष्य अफ्रीका में है।
अफ्रीकी सरकारें स्थानीय प्रसंस्करण को बढ़ावा दे रही हैं। श्रम सस्ता है, बाजार बढ़ रहा है। आने वाले काजू अरबपति वे होंगे जो अफ्रीका को केवल सप्लायर नहीं, बल्कि वैश्विक प्रसंस्करण केंद्र के रूप में देखेंगे।
🌍 भारत और वियतनाम का “काजू युद्ध” केवल व्यापार नहीं — यह अरबों डॉलर की वैल्यू चेन पर नियंत्रण की लड़ाई है।

Hiren Gandhi
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