चिन्नास्वामी स्टेडियम की त्रासदी और भारत में सुरक्षा पर सवाल
जश्न से मातम तक
4 जून 2025, बेंगलुरु का चिन्नास्वामी स्टेडियम। रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (RCB) ने अपनी पहली आईपीएल ट्रॉफी जीती। लेकिन जश्न की जगह मातम छा गया। एक भयानक भगदड़ में 11 लोगों की जान चली गई और 50 से ज्यादा लोग घायल हुए। ये लोग अपनी पसंदीदा टीम को चीयर करने आए थे। क्या यह उनकी गलती थी?
बार-बार वही गलती
यह कोई नया हादसा नहीं है। 2010 में भी चिन्नास्वामी स्टेडियम में बम धमाके हुए थे। तब भी सवाल उठे थे, और आज भी वही सवाल हैं:
- प्रवेश और निकास द्वार क्यों कम थे?
- भीड़ नियंत्रण की कोई योजना क्यों नहीं थी?
- सुरक्षा मानकों का पालन क्यों नहीं हुआ?
आयोजकों और प्रशासन ने सुरक्षा को नजरअंदाज किया। स्टेडियम के बाहर जरूरत से ज्यादा भीड़ को इकट्ठा होने दिया गया। क्या यह लापरवाही नहीं है?
क्या इंसानी जान की कोई कीमत नहीं?
भारत में हर साल बड़े आयोजनों में भगदड़ होती है—कुंभ मेला, धार्मिक यात्राएँ, और अब क्रिकेट स्टेडियम। हर बार मुआवजा देकर बात खत्म कर दी जाती है। लेकिन क्या 5 लाख रुपये किसी माँ-बाप का दर्द कम कर सकते हैं, जिन्होंने अपने बच्चे को खो दिया?
भारत में इंसानी जान की कीमत इतनी कम क्यों है?
क्रिकेट फैन होना जोखिम क्यों?
क्रिकेट भारत में सिर्फ खेल नहीं, एक जुनून है। लोग घंटों लाइन में लगकर टिकट खरीदते हैं, अपने सितारों को करीब से देखने का सपना लिए। लेकिन अगर यही सपना उनकी आखिरी सांस का कारण बने, तो यह कैसी व्यवस्था है?
सोशल मीडिया पर एक फैन ने लिखा:
“हम RCB की जीत का जश्न मनाने आए थे, लेकिन अपनों को खो दिया।”
कहाँ हुई चूक?
- कम प्रवेश द्वार, ज्यादा भीड़।
- कोई लाइन प्रबंधन नहीं।
- स्वयंसेवकों की कमी।
- पुलिस सिर्फ भीड़ हटाने में व्यस्त, मार्गदर्शन में नहीं।
- आपातकालीन व्यवस्था शून्य।
RCB का जश्न आयोजकों और प्रशासन ने मिलकर आयोजित किया, लेकिन किसी ने जोखिम का आकलन नहीं किया।
सिर्फ संवेदना क्यों?
हादसे के बाद कुछ खिलाड़ियों और नेताओं ने दुख जताया। RCB के स्टार खिलाड़ी ने लिखा:
“यह दिल तोड़ने वाला है। कोई जश्न जान से कीमती नहीं।”
लेकिन संवेदना से क्या होगा? जिम्मेदारी कौन लेगा?
सवाल जो पूछे जाने चाहिए
- क्या हर बड़े आयोजन में भीड़ नियंत्रण नियम अनिवार्य नहीं होने चाहिए?
- क्या आयोजकों की जिम्मेदारी सिर्फ पैसा कमाने तक है?
- क्या भारत के स्टेडियम अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों पर खरे हैं?
- क्या फैंस की सुरक्षा सिर्फ किस्मत पर छोड़ी जाएगी?
समाधान क्या?
- टिकट के साथ समय-आधारित प्रवेश।
- विशेष प्रशिक्षित भीड़ नियंत्रण बल।
- आपातकालीन निकास अभ्यास।
- डिजिटल गेट एंट्री सिस्टम।
- प्रशासन और आयोजकों की संयुक्त आपदा योजना।
निष्कर्ष: जश्न की कीमत क्या?
चिन्नास्वामी स्टेडियम की त्रासदी ने दिखाया कि भारत में आयोजनों की चमक इंसानी जान से बड़ी हो गई है। अब समय है जिम्मेदारी लेने और सुरक्षा को प्राथमिकता देने का।
RCB की जीत याद रहेगी, लेकिन उन 11 मासूमों की यादें और गहरी होंगी, जो अपने जुनून की भेंट चढ़ गए।


