अगर आप विडियो एडिटर हो या नहीं भी हो तो आपके सामने इंस्टाग्राम चलाते-चलाते या यूट्यूब पर वीडियो देखते समय एआई वीडियो जेनरेटर टूल का ऐड या खुद साक्षात एआई जनरेटेड वीडियो ज़रूर आया होगा। ऐसा क्यों? क्योंकि अभी एआई का ज़माना है, और टेक्नॉलजी बहुत तेजी से फैल रही है। ये एआई किसी के लिए वरदान है तो किसी के लिए अभिशाप।
हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर आपको ऐसे वीडियो दिख जाएंगे जिन्हें देखते ही आपको तेज़ झटका लगेगा। स्मूद, प्रोफेशनल, सिनेमैटिक और यहाँ तक कि एआई कैरेक्टर्स ऐड। जहां एक ऐड को शूट करने में, लोकेशन, आर्टिस्ट, प्रोडक्शन में लाखों खर्च होते हैं, वहाँ एआई वीडियो जेनरेटर ने इस काम को आसान और पॉकेट-फ्रेंडली कर दिया है।
लेकिन ट्विस्ट ये है कि ऐसे एआई जेनरेटर वीडियो किसी वीडियो प्रोफेशनल एडिटर्स या फिल्म स्कूल के ग्रैजुएट्स ने नहीं बनाए। इन्हें बनाया है आप और मेरे जैसे आम लोगों ने। यही वजह है कि एआई वीडियो जेनरेटर का उदय एक गेम-चेंजर लगता है।
अब ये सिर्फ़ कूल इफेक्ट्स की बात नहीं है। ये एक्सेस की बात है। पहले, एक अच्छा वीडियो बनाने के लिए चाहिए था महंगा कैमरा, घंटों की एडिटिंग और काफ़ी सीखने की मेहनत। अब? आपको सिर्फ़ एक अच्छे स्टूडेंट की तरह एआई कमांड्स और उसके पहलू समझने हैं, और लीजिए आप बन गए एक प्रोफेशनल वीडियो क्रिएटर। मिनटों में तैयार है प्रोफेशनल वीडियो। सच कहूँ तो वीडियो क्रिएशन अब मेनस्ट्रीम बन चुका है, जैसे कभी ब्लॉगिंग या सेल्फ़ी हुआ करती थी। और ये बड़ी बात है।
अगर आप पैरेंट्स हैं तो ज़रा याद कीजिए उस पल के बारे में जब आपको अपने बच्चे के जन्मदिन के लिए वीडियो बनवाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती थी। आज यही काम इन एआई वीडियो जेनरेटर से मिनटों में हो रहा है। यहाँ तक कि म्यूज़िक, कैप्शन और ऐनिमेशन के साथ। है न कमाल की बात?
अगर अब बात करें छोटे व्यापारियों की जिनका वीडियो बनाने का बजट नहीं होता था। अब ऐसे व्यापारी भी अपने प्रोडक्ट के डेमो, ऐड्स और एक्सप्लेनर वीडियो दिनों में नहीं, घंटों में तैयार कर रहे हैं।
अगर इसकी तुलना की जाए तो ये बिल्कुल वैसा है जैसे Canva ने डिज़ाइन को आसान बना दिया था। जहां ग्राफ़िक डिज़ाइन के लिए अलग-अलग सॉफ़्टवेयर पर काम करना पड़ता था, Canva ने उसे एकदम आसान बना दिया। बस आपकी सोच क्रिएटिव होना बहुत ज़रूरी है, और यही चीज़ एआई वीडियो जेनरेटर टूल पर भी लागू होती है।
यहाँ पर ये टूल्स वरदान के साथ-साथ कुछ लोगों के लिए अभिशाप भी हैं। ये हैं वो लोग जो पुराने डिज़ाइनर या एडिटर हैं, और जो इन टूल्स को ऑपरेट करना नहीं जानते, या यूं कहें कि वो अपग्रेड नहीं हो पाए हैं। अब या तो उन्हें समय के साथ सिंक होना पड़ेगा या फिर जैसा काम चल रहा है वैसा चलाना पड़ेगा।
अब, क्योंकि ये टूल्स प्रोफेशनल टीम हायर करने से काफ़ी सस्ते हैं, इसलिए लोग और भी ज़्यादा एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं। जहां एक एम्प्लॉई की सैलरी ₹30,000 महिना है, वहीं ये टूल्स महीने के सब्सक्रिप्शन पर उससे सस्ते पड़ते हैं।
इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए, एक प्रोफेशनल वीडियो एडिटर आशु से देशवाले की टीम ने बात की, आशु ने दो पक्ष रखे और कहा:
“एआई वीडियो टूल्स चलाना बहुत आसान है, आपको थोड़ी सी ट्रेनिंग की ज़रूरत है। जहां मुझे क्लाइंट्स के लिए ऐनिमेशन वीडियो बनाने में दिन लगते थे, ये टूल्स उससे काफी कम समय लेते हैं। मेरी मेहनत भी बचती है और क्लाइंट्स सैटिस्फ़ाई भी हो जाते हैं। कुछ महीनों में मेरे काम की स्पीड और भी फास्ट हो गई है। मेरे काम के लिए ये वरदान की तरह हैं।”
वहीं आशु ने इसका बुरा असर भी बताया और कहा:
“जो लोग इसे चलाना नहीं जानते, जिनका खर्चा छोटी-मोटी एडिटिंग के सहारे चलता है, ये उन लोगों के लिए नुकसानदायक है। एक तो उन्हें उनकी कम स्किल की वजह से नौकरी नहीं मिलेगी, और टेक्नॉलजी के साथ न चलने पर उन्हें बाहर से काम मिलना भी मुश्किल है।”
इन सबके चलते एक बात तो साफ़ है, ये बदलाव सिर्फ़ मज़ेदार प्रोजेक्ट्स या पर्सनल कहानियों तक सीमित नहीं है। ये नौकरियों को भी बदल रहा है। और बड़े पैमाने पर।
अब कंपनियां ऐसे लोगों की तलाश कर रही हैं जो क्रिएटिविटी और एआई दोनों का कॉम्बिनेशन ला सकें। सिर्फ़ ये कहना काफी नहीं कि “मैं डिज़ाइन कर सकता हूँ।” असली स्किल है: “मैं एआई के साथ डिज़ाइन कर सकता हूँ।”
मार्केटिंग टीम्स चाहती हैं कि कोई व्यक्ति स्टोरीबोर्ड बनाए और फिर उसी विज़न को एआई टूल्स में डालकर तुरंत ड्राफ्ट तैयार करे। एचआर विभाग एआई वीडियो से ऑनबोर्डिंग गाइड बना रहे हैं। फ्रीलांसर भी अब सीख रहे हैं कि कौन सा प्लेटफ़ॉर्म सबसे शार्प रिज़ल्ट देता है।
भविष्य की नौकरी? हाइब्रिड। ह्यूमन + एआई।
इसका मतलब है कि शिक्षा को भी नए सिरे से सोचना होगा। विद्यालयों को अब सिर्फ़ Photoshop या Premiere Pro नहीं, बल्कि ‘एआई टूल्स से बात करना’ भी सीखना होगा। ‘प्रॉम्प्ट लिखना’ सुनने में अजीब लगता है, लेकिन असल में यही नई डिजिटल लिटरेसी है। और क्यों नहीं? दस साल पहले कोडिंग एक स्पेशल स्किल मानी जाती थी, जो आज हर जगह फैल चुकी है। अब एआई की बारी है।
इतना कुछ चलते आपके मन में सवाल होगा कि अगर एआई मिनटों में वीडियो बना सकता है, तो इंसानी इमैजिनेशन का क्या होगा?
कुछ आलोचक मानते हैं कि हम क्रिएटिविटी को आउटसोर्स कर रहे हैं। अगर एल्गोरिदम ही स्टाइल, पेसिंग या म्यूज़िक तय करेगा, तो हमारे पास क्या बचेगा? बिल्कुल सही सवाल है। लेकिन हकीकत इससे थोड़ी और गहरी है।
एआई वीडियो जेनरेटर खुद से कहानी नहीं गढ़ते। वो प्रॉम्प्ट पर रिएक्ट करते हैं। यानी आप जो बोलोगे, आपके दिमाग में जो होगा ये वही देगा। आपकी क्रिएटिविटी अब भी बरकरार रहेगी। आपकी सोच – “अगर हम इसे ऐसे दिखाएं तो?” यही सबसे बड़ा शस्त्र है। बल्कि, पहले से भी ज़्यादा। आपको आइडिया सोचना होगा, नैरेटिव गढ़ना होगा, और इमोशनल पंच तय करना होगा। एआई केवल ब्रश है, असली हम खुद हैं।
कई बार तो नतीजे क्रिएटर्स को भी चौंका देते हैं। यही है वो शस्त्र – मानवीय कल्पना + मशीन की स्पीड। इसी से नई संभावनाएं पैदा होती हैं।
हाँ, इसमें कमियाँ भी हैं। कई बार एआई वीडियो अजीब लगते हैं। चेहरे गड़बड़ा जाते हैं। मूवमेंट्स भी अजीब लगते हैं। लेकिन यही बातचीत की वजह भी बनता है। लोग बहस करते, एक्सपेरिमेंट करते, रिमिक्स करते। तो भाई, अब ये क्रिएटिविटी नहीं है तो क्या है?
सबसे दिलचस्प बात ये है कि एआई वीडियो जेनरेटर कितनी तेजी से आम ज़िंदगी में घुल-मिल रहे हैं। पैरेंट्स इन्हें फैमिली रील्स के लिए यूज़ कर रहे हैं। स्टार्ट-अप्स पिच बनाने में। नॉन-प्रॉफिट संगठन अवेयरनेस कैंपेन में। और स्टूडेंट्स प्रोजेक्ट्स के लिए।
इसका असर? जो वीडियो कभी सिर्फ़ एलीट और पॉलिश्ड मीडियम था, अब उतना ही कैज़ुअल हो रहा है जितना टेक्स्टिंग। और ये बदलाव हमारे कम्युनिकेशन का तरीका पलट सकता है। पावरपॉइंट भेजने की बजाय आप 60-सेकंड का एआई वीडियो शेयर कर सकते हैं। छोटे बिज़नेस को समझाने की बजाय आप एआई प्रोडक्ट डेमो पोस्ट कर सकते हैं।
हो सकता है कि भविष्य में कस्टमाइजेशन और बढ़ जाए। एआई वीडियो जल्द ही आपके पर्सनल स्टाइल को भी दिखाने लगेंगे, न कि सिर्फ़ टेम्पलेट्स।
साथ ही, इंटीग्रेशन वीडियो टूल्स उन ऐप्स में घुल-मिल जाएंगे जिन्हें हम पहले से इस्तेमाल कर रहे हैं, जैसे ज़ूम या इंस्टाग्राम। और हाँ, नैतिक बहसें भी तेज़ होंगी। अगर कोई एआई वीडियो से नकली घटनाएं बनाए या हाइपर-रियलिस्टिक झूठ दिखाए, तो क्या होगा?
लेकिन फिलहाल, इस बदलाव के केंद्र में हैं आम क्रिएटर। एआई वीडियो जेनरेटर इंसानों को रिप्लेस करने नहीं, बल्कि ज़्यादा लोगों को क्रिएट करने का मौका देने आए हैं।
तो, क्या एआई वीडियो जेनरेटर क्रिएटिविटी छीन रहे हैं या उसे और ताक़त दे रहे हैं? ये सिर्फ़ और सिर्फ़ आप पर निर्भर करता है। क्या आप इसे सीख कर इसके साथ चलना चाहते हैं? अगर आप उम्मीद करेंगे कि टूल सब कुछ खुद कर देगा, तो आपको जनरिक और बेस्वाद कंटेंट मिलेगा। लेकिन अगर आप अपनी इमैजिनेशन, अपनी यूनिकनेस, अपना विज़न लेकर आएंगे तो रिज़ल्ट अद्भुत मिलेगा।



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Bahut achcha app