क्या आपने कभी हिंदुस्तान में ‘पाकिस्तान’ नाम के गाँव के बारे में सुना है? जी हाँ, हिंदुस्तान का अपना पाकिस्तान! यह सुनकर लोग अक्सर चौंक जाते हैं कि भारत में एक गाँव का नाम पाकिस्तान हो सकता है। इस गाँव का पूरा नाम है पाकिस्तान टोला! यह बिहार के उत्तर-पूर्व में पूर्णिया जिले के श्रीनगर प्रखंड की सिंघिया पंचायत में, जिला मुख्यालय पूर्णिया शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर बसा है। अपने अनोखे नाम की वजह से यह गाँव हमेशा चर्चा में रहता है।
क्यों है इसका नाम पाकिस्तान
1947 में भारत-पाकिस्तान बँटवारे के बाद इस गाँव का नाम ‘पाकिस्तान’ रखा गया। उस समय यहाँ के कई मुस्लिम परिवार पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) चले गए। उनकी याद में स्थानीय लोगों ने इस गाँव को ‘पाकिस्तान टोला’ नाम दिया, और तब से यह नाम आज तक कायम है।
क्या यहांँ मुस्लिम समुदाय रहता है?
इस गांव की सबसे मजेदार बात यही है कि इस गांव में मुस्लिम समुदाय का एक भी घर नहीं है, और न ही एक भी मस्जिद है। सभी परिवार संथाल आदिवासियों के हैं, और आज भी सरकारी रिकार्ड में इस गांव का नाम पाकिस्तान ही है।
कैसा है यहांँ का विकास?
यहां के मूल निवासी विकास से कई साल पीछे हैं। कच्ची झोपड़ियों में रहन-सहन, मिट्टी, से लबालब कच्ची सड़कें, शिक्षा के लिए स्कूल नहीं है, बड़ी बिमारी के लिए अस्पताल तो बहुत दूर की बात है, बुनियादी इलाज के लिए ग्राम चिकित्सालय तक नहीं है। यहां के लोग अपनी जिंदगी जी नहीं रहे, सिर्फ़ गुजार रहे हैं।
यहां के लोग आधार कार्ड और वोटर आईडी पर ‘पाकिस्तान’ लिखा होने की वजह से शर्मिंदगी और भेदभाव झेलते हैं। बरसात में गाँव पानी में डूब जाता है, और लोग इधर-उधर शरण लेने को मजबूर हो जाते हैं। यहां रोजगार नहीं, सुविधाएँ नहीं। लोग शोच के लिए खेत या जंगल का सहारा लेते हैं। जिस भारत को आज डिजिटल इंडिया के रूप में विश्व मंच पर सराहा जाता है, उसी भारत में ऐसे गाँव हैं, जो बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। उसी सूची के पाकिस्तान टोला गांव के निवासी मुख्य रूप खेत-मजदूरी पर निर्भर हैं। इस गांव में विकास की तो दूर की बात है, यहां पर लोगों के लिए बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं।
क्या है यहां के लोगों की इच्छा?
लगभग 100 परिवारों का ये गांव अपने लिए बुनियादी मानवीय सुविधा चाहता है, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास की सुविधाएँ। यहाँ कोई स्कूल नहीं है, जिसके कारण बच्चों को पढ़ाई के लिए दूर-दराज के गाँवों में जाना पड़ता है। स्वास्थ्य सुविधाओं का भी अभाव है—नजदीकी अस्पताल मीलों दूर है, और आपातकाल में इलाज मिलना मुश्किल है।
एक चीज़ जो यहां के निवासियों के लिए सबसे अहम और ख़ास है—उनके गाँव का नाम बदलकर बिरसा नगर किया जाए, आदिवासी नायक बिरसा मुंडा के सम्मान में। ताकि उनके दस्तावेजों से ‘पाकिस्तान’ नाम हट सके। इस साल अप्रैल 2025 में पहलगाम हमले के बाद से, गाँववाले इस माँग को और जोर-शोर से उठा रहे हैं। लेकिन प्रशासनिक लापरवाही के चलते, सरकारी दस्तावेजों में आज भी ‘पाकिस्तान टोला’ ही दर्ज है, और बिरसा नगर को स्थायी मान्यता नहीं मिली है।
यह नाम, जो कभी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्मृति का प्रतीक था, अब गाँववालों के लिए एक चुनौती बन गया है। भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण संबंधों के कारण, पाकिस्तान नाम, गाँव के निवासियों के लिए सामाजिक और प्रशासनिक समस्याएँ खड़ी कर रहा है। यह गाँव भारत की उस जटिल विरासत को दर्शाता है, जहाँ इतिहास के निशान आज भी स्थानीय समुदायों के जीवन को प्रभावित करते हैं।
आधारभूत ढाँचे का अभाव
पाकिस्तान टोला की सबसे बड़ी त्रासदी इसका आधारभूत ढाँचा है। गाँव तक पक्की सड़के नहीं हैं, कच्चे रास्ते बरसात में कीचड़ में बदल जाते हैं। घर कच्ची झोपड़ियों के रूप में हैं, जो बारिश में टिक नहीं पाते। हर साल बरसात में गाँव पानी में डूब जाता है, और निवासियों को इधर-उधर शरण लेनी पड़ती है। सरकारी आवास योजनाएँ, जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना, यहाँ तक नहीं पहुँच पाई हैं।
गाँव में बिजली की सुविधा भी अनियमित है, और स्वच्छ पेयजल तक पहुँच एक सपना है। इन हालातों में, गाँववाले अपनी जिंदगी को जैसे-तैसे चला रहे हैं।
‘पाकिस्तान’ नाम का बोझ
पाकिस्तान टोला का नाम न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय है। गाँव के निवासियों के लिए यह नाम एक अभिशाप बन गया है। उनके आधार कार्ड, वोटर आईडी और अन्य सरकारी दस्तावेजों में पता ‘पाकिस्तान टोला’ ही दर्ज है। इसकी वजह से उन्हें नौकरी, शिक्षा और सामाजिक अवसरों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। कई बार लोग उनके भारतीय होने पर सवाल उठाते हैं, और कुछ मामलों में उन्हें ‘पाकिस्तानी’ कहकर ताने मारे जाते हैं।
यहां के लोगों का कहना है, “हम भारतीय हैं, हमारे पुरखों ने इस देश के लिए बलिदान दिए हैं, फिर भी हमें इस नाम के कारण शक की नजरों से देखा जाता है।” यह स्थिति न केवल उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाती है, बल्कि उनकी राष्ट्रीय पहचान पर भी सवाल उठाती है।
एक नया नाम, अधूरी उम्मीद
पाकिस्तान नाम के अभिशाप से मुक्ति पाने के लिए, गाँववालों ने अपने गाँव का नाम बदलकर ‘बिरसा नगर’ करने की माँग की। बिरसा मुंडा, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी, इस समुदाय के लिए गर्व का प्रतीक हैं। गाँववालों का मानना है कि यह नाम उनकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को बेहतर ढंग से दर्शाएगा।
प्रशासन ने आधिकारिक तौर पर गाँव का नाम बदलकर बिरसा नगर करने की घोषणा की, और यहाँ तक कि उद्घाटन समारोह भी हुआ। लेकिन यह बदलाव केवल कागजों तक सीमित रह गया। चुनाव आयोग के रिकॉर्ड में, आधार डेटाबेस में, और अन्य सरकारी दस्तावेजों में गाँव का नाम अब भी ‘पाकिस्तान टोला’ ही है।
सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
पाकिस्तान टोला भारत की विविधता और जटिल इतिहास का एक अनोखा उदाहरण है। यह गाँव दिखाता है कि कैसे ऐतिहासिक घटनाएँ—जैसे 1947 का बँटवारा आज भी छोटे-छोटे समुदायों के जीवन को प्रभावित करती हैं। गाँव का नाम भारत-पाकिस्तान के तनावपूर्ण संबंधों के कारण हमेशा चर्चा में रहता है, लेकिन स्थानीय लोग जोर देकर कहते हैं कि उनका गाँव केवल एक ऐतिहासिक संदर्भ से जुड़ा है, न कि किसी राजनीतिक या धार्मिक विचारधारा से।
यह गाँव भारत की उस सच्चाई को भी उजागर करता है, जहाँ ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की गति धीमी है, और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियाँ लोगों के जीवन को कठिन बनाती हैं। फिर भी, पाकिस्तान टोला के निवासियों में एक अदम्य हौसला है। वे अपने गाँव को बेहतर बनाने और अपनी पहचान को पुनर्जनन करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
एक गाँव, एक देश, एक कहानी
पाकिस्तान टोला सिर्फ एक गाँव नहीं, बल्कि भारत के इतिहास, विविधता और चुनौतियों का प्रतीक है। यह गाँव हमें याद दिलाता है कि बँटवारे जैसी घटनाएँ केवल किताबों में दर्ज नहीं होतीं, बल्कि वे लोगों के जीवन, उनकी पहचान और उनके सपनों को भी आकार देती हैं। गाँववाले चाहते हैं कि उनका गाँव बिरसा नगर के नाम से जाना जाए, ताकि वे अपने आदिवासी गौरव को गर्व से जी सकें। लेकिन इसके लिए उन्हें न केवल प्रशासनिक सहयोग की जरूरत है, बल्कि सामाजिक स्वीकृति और बुनियादी सुविधाओं की भी।
यह कहानी न केवल पाकिस्तान टोला की है, बल्कि उन तमाम ग्रामीण समुदायों की है, जो उपेक्षा और अभावों के बीच अपनी पहचान और सम्मान की लड़ाई लड़ रहे हैं। क्या यह गाँव कभी सही मायनों में ‘बिरसा नगर’ बन पाएगा? क्या यहाँ के लोग सड़क, स्कूल और अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाओं का सपना पूरा कर पाएँगे? ये सवाल न केवल पाकिस्तान टोला के भविष्य को, बल्कि भारत के ग्रामीण विकास के दृष्टिकोण को भी परिभाषित करते हैं।
Disclaimer
इस लेख में प्रस्तुत जानकारी बिहार के पूर्णिया जिले में स्थित पाकिस्तान टोला गाँव के बारे में उपलब्ध स्रोतों और सामान्य ज्ञान पर आधारित है। लेख का उद्देश्य केवल जानकारी और जागरूकता प्रदान करना है, न कि किसी समुदाय, धर्म या व्यक्ति के प्रति पक्षपात करना या उनकी भावनाओं को ठेस पहुँचाना। लेख में व्यक्त विचार और तथ्य लेखक की समझ और उपलब्ध जानकारी पर आधारित हैं, जो समय के साथ बदल सकते हैं। पाठकों से अनुरोध है कि वे किसी भी संवेदनशील मुद्दे के लिए आधिकारिक स्रोतों से जानकारी सत्यापित करें। लेखक या प्रकाशक इस लेख के उपयोग से होने वाली किसी भी गलतफहमी या नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होंगे।
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