दिल्ली का इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा शुक्रवार सुबह से अफरातफरी में डूबा हुआ था। सैकड़ों उड़ानें घंटों की देरी से रवाना हुईं, कुछ को दूसरी जगह भेजना पड़ा, और यात्रियों का धैर्य टूटने लगा। किसी की अगली उड़ान छूट गई, कोई ओफिस की मीटिंग मिस कर गया, तो कोई छोटे बच्चे के साथ घंटों द्वार बदलता रहा।
वायु यातायात प्रणाली में तकनीकी दिक्कतें और अत्यधिक भीड़भाड़ इसकी वजह बताई गईं, लेकिन नतीजा वही रहा — यात्रियों के चेहरों पर थकान और झुंझलाहट। सवाल अब यह है कि जब उड़ान देर होती है, तो जिम्मेदारी किसकी बनती है — व्यवस्था की, विमान सेवा की, या उस आम यात्री की जो केवल टिकट खरीदने की कीमत नहीं, अपना समय भी चुका रहा होता है?
भारत में हवाई यात्रा का दायरा बढ़ा है, लेकिन यात्रियों के अधिकारों की जागरूकता अब भी कम है। विमान सेवा एक ईमेल भेजकर “असुविधा के लिए खेद है” लिख देती है, और हम सब मान लेते हैं कि मामला समाप्त। मगर नागरिक उड्डयन महानिदेशालय के नियम कहते हैं — मामला यहीं खत्म नहीं होता। दो घंटे की देरी पर रिफ्रेशमेंट, चार घंटे पर भोजन या री-शेड्यूल, और छह घंटे से अधिक की देरी पर होटल या रिफंड — ये केवल सलाह नहीं, नियम हैं, हक है। फिर भी, कितनी विमान सेवाएं इन्हें पालन करती हैं? बहुत कम। कारण साफ है — क्योंकि हम मांगते नहीं।
उड़ान देर होने पर केवल मोबाइल पर स्क्रीन देखते रहना व्यर्थ है। विमान सेवा के काउंटर पर जाकर लिखित कारण मांगिए। बोर्डिंग पास और टिकट संभालकर रखिए। और यदि कोई सुविधा नहीं दी गई, तो नागरिक उड्डयन महानिदेशालय के एयर सेवा अनुप्रयोग या वेबसाइट पर शिकायत दर्ज करें — ये शिकायतें ट्रैक होती हैं और विमान सेवा को उत्तर देना पड़ता है। अब जरा बड़ा सवाल देखें — क्या ये बार-बार होने वाली देरी केवल मौसम या तकनीकी गलती है? नहीं। यह एक सामूहिक लापरवाही है — जहां व्यवस्था खुद को “तकनीकी कारण” कहकर बचा लेती है, और विमान सेवा “खेद” कहकर मुक्त हो जाती है। जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी, ये घटनाएं जारी रहेंगी।
दिल्ली हवाईअड्डे की यह घटना हमें याद दिलाती है कि भारत का विमानन क्षेत्र यात्रियों की सुविधा को अब भी बोनस मानता है, अधिकार नहीं। हमें यह धारणा बदलनी होगी — टिकट खरीदना किसी विमान सेवा पर उपकार नहीं, बल्कि एक अनुबंध है। और हर अनुबंध की तरह, इसमें भी दोनों पक्षों की जिम्मेदारी बराबर है। अगली बार जब आपकी उड़ान देर हो, तो केवल प्रतीक्षा मत कीजिए। पूछिए — क्यों, कब तक, और अब क्या सुविधा मिलेगी? क्योंकि हवाई अड्डे पर आपकी खामोशी ही सबसे बड़ा कारण है कि यह देरी हर बार “सामान्य” मानी जाती है। अब समय है कि हर यात्री कहे — “देरी नहीं, जवाब चाहिए।”
इस स्थिति में तीन प्रमुख बातें सामने आईं। स्वचालित संदेश प्रणाली के असफल होने की वजह से नियोजन और उड़ान प्रस्थान की प्रक्रिया पूरी तरह मैनुअल हो गई। मैनुअल प्रक्रिया में समय बहुत अधिक लगता है — जिसके चलते बोर्डिंग, रनवे पर टैक्सी चलना, उड़ान भरना और उतरना सभी प्रभावित हुए। देरी ने केवल दिल्ली को नहीं रोका — इसका असर पूरे उत्तर भारत के हवाई नेटवर्क पर पड़ा। अगली उड़ानें, चालक दल की समय सीमा, और विमान संचालन — सब बाधित हुए। यात्रियों को जानकारी न मिलना और सुविधाओं का न मिलना — यह स्थिति बनी रही। विमान सेवाओं ने माफी तो मांगी, लेकिन कई यात्रियों ने बताया कि उन्हें भोजन कूपन या ठहरने की सुविधा का कोई भरोसा नहीं दिया गया।
यदि विमान सेवा द्वारा भोजन, पानी या होटल की सुविधा नहीं दी जाती, तो तुरंत एयर सेवा अनुप्रयोग या नागरिक उड्डयन महानिदेशालय पोर्टल पर शिकायत करें। यदि अगली उड़ान छूट गई है या टिकट धनवापसी नहीं मिली है — तो रुकें मत, कार्रवाई करें। यही चुनौती है — अपनी आवाज़ उठाना।
जब दिल्ली जैसे व्यस्त हवाई अड्डे पर 800 से अधिक उड़ानें प्रभावित होती हैं, तो यह केवल तकनीकी विफलता नहीं, पूरे सिस्टम की कमजोरी है। यात्रियों से “धैर्य रखें” कहना पर्याप्त नहीं। एयरलाइन और हवाईअड्डे को जवाबदेह बनाना होगा। फिलहाल, तकनीकी समस्या ठीक कर दी गई है लेकिन बचे हुए उड़ानों के जाम का असर अब भी जारी है — यात्रियों का इंतजार, असमंजस और थकान खत्म नहीं हुई।
दिल्ली एयरपोर्ट पर हालात अब भी सामान्य नहीं हैं। सुबह से लेकर देर शाम तक कई उड़ानें या तो कैंसिल हुईं या घंटों तक रनवे पर खड़ी रहीं। मौसम और एयर ट्रैफिक की वजह से देरी का सिलसिला जारी है — रिपोर्ट्स के मुताबिक लगभग 250 से ज्यादा उड़ानें प्रभावित हुई हैं, जिनमें दिल्ली आने-जाने वाली घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों फ्लाइट्स शामिल हैं। कई यात्रियों को एयरपोर्ट पर 3 से 5 घंटे तक इंतजार करना पड़ा। यात्रियों की शिकायतें अब सोशल मीडिया तक पहुंच चुकी हैं — कोई बच्चों के साथ फंसा है तो कोई इंटरनेशनल कनेक्शन मिस कर चुका है। एयरपोर्ट अथॉरिटी और एयरलाइंस दोनों ही “कंट्रोल्ड सिचुएशन” का दावा कर रही हैं, लेकिन यात्रियों के अनुभव कुछ और ही कहानी सुना रहे हैं।
कहां हुई चूक, किसका बोझ? यह सब मिलकर एक बड़ी तस्वीर बनाते हैं जहां व्यवस्था की कमजोरी, विमान सेवाओं की उदासीनता और यात्रियों की चुप्पी मिलकर देरी को “सामान्य” बना देती है। लेकिन बदलाव की शुरुआत आपसे हो सकती है — हर बार जब उड़ान देर हो, तो सवाल उठाइए, सुविधा मांगिए, और यदि जरूरत पड़े तो शिकायत कीजिए। क्योंकि आपका टिकट केवल एक सीट नहीं, एक वादा है — समय पर पहुंचने का, सम्मान का, और सुविधा का।
सोशियल मीडिया पर इसपर प्रतिक्रियाएं
शुक्रवार को दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे (IGI) पर एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) सिस्टम में आई गड़बड़ी के चलते फंसे यात्रियों ने सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकाली। देरी के साथ-साथ रीयल-टाइम जानकारी और कम्युनिकेशन की कमी ने गुस्सा बढ़ाया, जिसे X पर निराश यात्रियों ने अपनी कहानियां साझा कर उजागर किया। एयर इंडिया, इंडिगो और अन्य एयरलाइंस ने सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया दी, प्रभावित यात्रियों से डिटेल्स मांगकर सहायता का आश्वासन दिया।
अधिकारियों ने बताया कि ATC ऑपरेशंस धीरे-धीरे सुधर रहे हैं और फ्लाइट क्लियरेंस नॉर्मल हो रही है, जिससे IGI का बैकलॉग कम हो रहा है। एयरपोर्ट के बाहर टैक्सी स्टैंड पर लंबी कतारें और अफरा-तफरी थी; प्री-बुक्ड कैब्स छूट गईं।
अयोध्या से आए राजेंद्रन अपनी डायबिटीज से पीड़ित पत्नी के लिए टैक्सी ढूंढते हुए टर्मिनल-1 से निकले, उनकी फ्लाइट QP1607 जो दोपहर 12:15 बजे आनी थी, 1:39 बजे लैंड हुई। कईयों के लिए ये गड़बड़ी सिर्फ असुविधा नहीं, मिस्ड कनेक्शंस और बिगड़े प्लान्स थी।
हैपी धालीवाल अपनी बहन और बच्चे का इंतजार करते हुए बोले कि बार-बार री-शेड्यूलिंग से उनकी कनेक्टिंग फ्लाइट छूट जाएगी; अमृतसर से AI1884 सुबह 7:55 बजे उड़नी थी, लेकिन दोपहर 1 बजे उड़ी। टर्मिनलों के अंदर बोर्डिंग गेट्स और इन्फॉर्मेशन काउंटर्स पर लंबी कतारें थीं, डिस्प्ले बोर्ड्स पर लाल ‘Delayed’ साइन बार-बार चमक रहा था।
बेलगावी से आए बिजनेसमैन जगन ने बताया कि दिल्ली फ्लाइट 40 मिनट लेट होने से वहां एक घंटे से ज्यादा इंतजार किया, एयरपोर्ट पहुंचकर ही पता चला, अब री-शेड्यूल्ड फ्लाइट से उनका बिजनेस प्रभावित होगा।
@MohitSRathore ने पारदर्शिता की कमी पर सवाल उठाया कि आधुनिक एविएशन में बड़े एयरपोर्ट पर ATC फेलियर इतने लंबे समय तक अनअटेंडेड कैसे रह सकता है, यात्रियों को समय पर कम्युनिकेशन मिलना चाहिए।
@budgamboy ने हल्के अंदाज में कहा कि दिल्ली एयरपोर्ट अभी एयरपोर्ट-थीम्ड रियलिटी शो लग g रहा है—ATC इश्यूज, लेट फ्लाइट्स, लंबी कतारें, कन्फ्यूज्ड स्टाफ और धैर्य की प्रैक्टिस करते यात्री।
@MetarSpeci ने बताया कि दिल्ली एयर ऑपरेशंस में भारी अफरा-तफरी है, ATC सिस्टम नहीं चल रहा, 2-3 घंटे की देरी क्लियरेंस में, सब मैनुअल हो गया जैसे 70 के दशक में, बैकअप भी ऑटोमेशन होना चाहिए न कि मैनुअल।
@ajoradarti ने अपनी परेशानी शेयर की—कोई अपडेट नहीं, 3 घंटे यात्रा कर एयरपोर्ट पहुंचे, 3 घंटे देरी, 2 घंटे पहले आए, कुल 8 घंटे इंतजार, कोई मदद नहीं।
@dayespecial ने लिखा कि सिग्नल फेलियर से प्लेन में 2 घंटे बैठना नाइटमेयर है, 90 फ्लाइट्स कतार में, टेकऑफ का कोई क्लैरिटी नहीं, फेलियर हो सकता है लेकिन बोर्डिंग से पहले क्यों नहीं बताते?
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