सोचिए, सुबह की चाय किसी समुद्र किनारे कैफे में, लैपटॉप आपकी गोद में और सामने खुला आसमान। न दफ्तर की भीड़, न रोज़ के ट्रैफिक का झंझट। ऐसा सपना अब सच्चाई बन चुका है। दुनियाभर में लाखों लोग अब एक ही जगह बंधे नहीं रहना चाहते। वे घूमते हैं, काम करते हैं और एक नई तरह की ज़िंदगी जीते हैं। इन्हें कहा जाता है डिजिटल नोमेड।
लिस्बन की पुरानी गलियों में अब लैपटॉप की रौशनी दिखती है। मेडेलिन की चहल-पहल भरी गलियों में विदेशी कामकाजी लोग नज़र आते हैं। थाईलैंड के चियांग माई में मंदिरों के पास को-वर्किंग स्पेस खुल चुके हैं। ये शहर अब बदल रहे हैं। एक नई जीवनशैली की पृष्ठभूमि बन रहे हैं।
लेकिन हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। जहां एक ओर आज़ादी और रोमांच है, वहीं दूसरी तरफ बढ़ते किराए, संस्कृति का टकराव और स्थानीय लोगों की मुश्किलें भी हैं।
काम अब जगह का मोहताज नहीं
कोविड के बाद रिमोट वर्क यानी दूर से काम करने का चलन बहुत तेज़ हुआ। 2025 तक करीब 3.5 करोड़ डिजिटल नोमेड दुनिया भर में सक्रिय हैं, जो कहीं से भी अपना काम कर सकते हैं। वे कोडर हैं, लेखक हैं, डिज़ाइनर हैं या कंटेंट क्रिएटर हैं।
लिस्बन, मेडेलिन और चियांग माई जैसे शहर अब उनके पसंदीदा बन गए हैं। तेज़ इंटरनेट, सस्ता रहन-सहन और रचनात्मक माहौल उन्हें खींचता है। इससे इन शहरों के छोटे व्यवसायों को फायदा हुआ है। कैफे चलते हैं, को-वर्किंग स्पेस खुलते हैं।
लेकिन स्थानीय लोगों की मुश्किलें भी बढ़ी हैं। लिस्बन में किराए में 20 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है। एक स्थानीय बारिस्ता, जोआओ सिल्वा कहते हैं, “अब मैं अपने शहर में ही घर नहीं ले सकता।” बाली में तो विदेशी नोमेड्स के व्यवहार को लेकर प्रदर्शन तक हो चुके हैं। कई बार पवित्र स्थलों पर योगा करना या ट्रैफिक में अव्यवस्था जैसी बातें स्थानीय संस्कृति को ठेस पहुंचाती हैं।
आर्थिक फायदा, लेकिन सामाजिक दबाव
डिजिटल नोमेड जहां भी जाते हैं, वहां पैसा भी साथ लाते हैं। मेडेलिन में 2024 में पर्यटन से 15 प्रतिशत ज्यादा आमदनी हुई, को-वर्किंग सेंटरों ने सैकड़ों लोगों को रोज़गार दिया। लेकिन किराए और घरों की उपलब्धता को लेकर दबाव बढ़ता जा रहा है।
चियांग माई में मकान मालिक अब विदेशी नोमेड्स को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिससे स्थानीय लोगों को मकान ढूंढना मुश्किल हो गया है। लिस्बन का पुराना इलाका ‘अलफामा’ अब एयरबीएनबी जैसी लिस्टिंग से भर गया है, जहां कभी कामकाजी लोग रहा करते थे।
सांस्कृतिक अंतर भी बढ़ रहे हैं। पश्चिमी देशों से आए नोमेड्स अक्सर स्थानीय रीति-रिवाज़ नहीं समझते। बाली में उन्हें ‘डिजिटल उपनिवेशवादी’ कहकर आलोचना की गई है। हालांकि, कुछ नोमेड्स जैसे कि सारा किम, जो लिस्बन में रह रही हैं, इसे समझती हैं। वह कहती हैं, “यह शहर मुझे प्रेरणा देता है, लेकिन हम इसे बदल भी रहे हैं।”
सरकारें अब जाग रही हैं
कुछ देश अब डिजिटल नोमेड्स को ध्यान में रखकर नई नीतियां बना रहे हैं। क्रोएशिया ने 2021 में डिजिटल नोमेड वीज़ा शुरू किया, जो एक साल तक वहां रहने की अनुमति देता है। थाईलैंड और पुर्तगाल ने भी नई योजनाएं शुरू की हैं।
लिस्बन की शहरी योजनाकार आना मेंडेस मानती हैं कि ये लोग शहर में नई ऊर्जा लाते हैं, लेकिन चुनौती भी। वह कहती हैं, “हमें खुलेपन और न्याय के बीच संतुलन बनाना होगा।” लिस्बन में अब शॉर्ट टर्म रेंटल्स की सीमा तय की गई है। चियांग माई में किफायती आवास के लिए फंडिंग शुरू हुई है, लेकिन ज़मीनी असर अब भी कम है।
जब दो जिंदगियां टकराती हैं
आइए मिलते हैं आइशा से, नाइजीरिया की 29 वर्षीय कोडर, जो अब मेडेलिन में एक लंदन की कंपनी के लिए काम करती हैं। वह कहती हैं, “यह शहर ज़िंदा है।” लेकिन उनका मकान मालिक दो बार किराया बढ़ा चुका है। दूसरी तरफ मारिया, जो एक स्थानीय शिक्षिका हैं, अब शहर छोड़कर बाहर रहने लगी हैं। “नोमेड ज़्यादा पैसे दे सकते हैं,” वह कहती हैं।
चियांग माई की एक स्ट्रीट वेंडर नोई भी इस बदलाव को महसूस करती हैं। “वे मेरी नूडल्स खरीदते हैं, लेकिन मेरी बेटी को किराए का घर नहीं मिल रहा।” आइशा जैसी नोमेड्स अपने प्रभाव को लेकर सोचती हैं। “मैं भाषा सीखने की कोशिश करती हूं, लोकल दुकानों से खरीदारी करती हूं, लेकिन लगता है यह काफी नहीं है।”
आगे क्या?
अब ज़रूरत है सोचने की, समझदारी की। लिस्बन में को-लिविंग की नई व्यवस्था शुरू की गई है, जिससे किराए का दबाव घटे। मेडेलिन में स्थानीय स्टार्टअप्स को बढ़ावा दिया जा रहा है। चियांग माई में सांस्कृतिक जागरूकता के लिए अभियान चल रहे हैं।
नोमेड्स का व्यवहार भी बदल रहा है। कुछ अब ‘स्लो नोमेडिज़्म’ की ओर बढ़ रहे हैं, यानी एक ही जगह लंबे समय तक रहना, स्थानीय लोगों से जुड़ना और उनका सम्मान करना। यह ट्रेंड शहरों के मायने बदल रहा है।
काम अब दफ्तर का मोहताज नहीं रहा। घर अब सिर्फ एक जगह नहीं रहा। लेकिन इस बदलाव में स्थानीय लोगों की सुरक्षा और सम्मान जरूरी है। आइशा चाहती हैं कि वह बिना किसी को नुकसान पहुंचाए कहीं से भी काम कर सकें। जोआओ बस यही चाहते हैं कि वह अपने शहर में रह सकें। इन दोनों की उम्मीदें एक नये संतुलन पर टिकी हैं, एक ऐसा वैश्विक गांव जो सबके लिए हो।


