शिक्षा का स्वरूप आज पहले जैसा नहीं रहा। मोबाइल, लैपटॉप और इंटरनेट ने कक्षा की दीवारें तोड़ दी हैं। अब ज्ञान केवल स्कूल में नहीं, बल्कि हर घर में पहुंच चुका है।
कोरोना महामारी के समय जब दुनिया थम गई थी, तब शिक्षा का पहिया डिजिटल माध्यमों से ही घूमता रहा।”महामारी के दौरान देश के लगभग 32 करोड़ छात्र प्रभावित हुए, लेकिन डिजिटल डिवाइड के कारण केवल 20-32% (लगभग 6-10 करोड़) ही ऑनलाइन कक्षाओं तक पहुँच सके ।”
लेकिन अब जब सब सामान्य हो गया है, तो एक सवाल उठता है क्या डिजिटल शिक्षा ने भौतिक शिक्षा की जगह सच में ले ली है? या फिर हमने सीखने का असली अनुभव कहीं खो दिया है? डिजिटल शिक्षा ने सीखने को आसान बनाया है। अब कोई भी बच्चा देश के किसी भी कोने से इंटरनेट के जरिये पढ़ सकता है। सरकारी नियमों के मुताबिक, महामारी में भारत के 80-90% कॉलेज और यूनिवर्सिटी ने ऑनलाइन क्लास शुरू कीं।
वीडियो, ऑडियो, एनिमेशन और ई-बुक्स ने पढ़ाई को आसान और मजेदार बना दिया। यह तरीका समय और यात्रा दोनों की बचत करता है। ग्रामीण क्षेत्रों के कई बच्चों के लिए यह शिक्षा तक पहुंच का एक नया दरवाजा बना है।
डिजिटल माध्यम से छात्र अब देश-विदेश के विशेषज्ञों से भी सीख सकते है| लेकिन अगर हम बात स्कूल की करे तो , स्कूल की कक्षा का माहौल कुछ अलग ही होता है। वहां शिक्षक की मुस्कान, सहपाठियों की हंसी, और साथ मिलकर सीखने का अनुभव ही अनोखा होता है। भौतिक शिक्षा सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रहती, यह बच्चों को अनुशासन, संवाद, सहयोग और आत्मविश्वास सिखाती है। स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे ऑनलाइन पढ़ने वालों की तुलना में सामाजिक कौशल (जैसे संवाद, टीमवर्क, सहानुभूति) बेहतर विकसित करते हैं।
कक्षा में चर्चा, समूह कार्य, खेल और शिक्षक का मार्गदर्शन यह सब बच्चों के मानसिक विकास में अहम भूमिका निभाता है। ऑनलाइन शिक्षा में मानवीय जुड़ाव की कमी महसूस होती है। स्क्रीन पर पढ़ाई करते समय बच्चे शिक्षक से भावनात्मक रूप से जुड़ नहीं पाते।
लगातार मोबाइल या लैपटॉप पर बैठने से बच्चों की दृष्टि, नींद और मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। रिपोर्ट के अनुसार अगर देखा जाए तो , महामारी के दौरान कई छात्रों ने बताया कि ऑनलाइन क्लासेज से उनका ध्यान केंद्रित नहीं हो पाता। विज्ञान के प्रयोग, खेल, कला या संगीत जैसी गतिविधियां ऑनलाइन पूरी तरह संभव नहीं हैं। इसके अलावा, तकनीकी दिक्कतें, नेटवर्क समस्या और बिजली कटौती जैसे मुद्दे ग्रामीण छात्रों के लिए बड़ी चुनौती हैं।
इन सबके कारण शिक्षा का अनुभव अधूरा रह जाता है।
आज सबसे जरूरी हमारे लिए यह है कि डिजिटल और भौतिक शिक्षा के बीच सही संतुलन बनाया जाए। हमें तकनीक को शिक्षा का हिस्सा बनाना चाहिए, लेकिन शिक्षक और छात्रों के मानवीय संबंधों को बनाए रखना भी उतना ही आवश्यक है। हाइब्रिड शिक्षा यानी ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों का मिश्रण भविष्य की जरूरत है।
सरकार ने ‘प्रधानमंत्री ई-विद्या योजना’ और ‘स्वयं पोर्टल’ जैसी पहलें शुरू की हैं, ताकि हर छात्रों तक डिजिटल शिक्षा पहुंचे।
परंतु साथ ही यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि बच्चों को स्कूल के माहौल, खेल-कूद और सहपाठियों के साथ बातचीत का अनुभव भी मिलता रहे। डिजिटल शिक्षा ने नई राहें खोली हैं, लेकिन इसमें भावना और मानवीय जुड़ाव की कमी है। तकनीक हमें ज्ञान देती है, पर शिक्षक हमें जीवन जीना सिखाते हैं। शिक्षा का सही रूप वही है जिसमें तकनीक और इंसान दोनों साथ चलें।
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