जब मोगा की गलियों में एक छोटी लड़की बल्ला लेकर मैदान पर उतरी, तो किसी ने नहीं सोचा था कि वह भारतीय महिला क्रिकेट की सबसे चर्चित कप्तानों में से एक बनेगी। हरमनप्रीत कौर का बचपन क्रिकेट से घिरा था, क्योंकि उनके पिता हरमंदर सिंह क्लब स्तर पर खेलते थे। 90 के दशक में लड़की का क्रिकेट खेलना आसान नहीं था। लोग कहते थे, “लड़कियाँ क्रिकेट नहीं खेलतीं,” लेकिन हरमन के लिए यह सिर्फ खेल नहीं, पहचान की शुरुआत थी।
हरमनप्रीत का जन्म 8 मार्च 1989 को पंजाब के मोगा ज़िले में हुआ। हरमन बचपन में मोहल्ले के लड़कों के साथ क्रिकेट खेला करती थीं। मैदान में अकेली लड़की होते हुए भी वे कभी पीछे नहीं हटीं। बल्ला हाथ में आते ही सब कुछ भूल जाती थीं। कोच कमलदेव अरोड़ा ने उनकी प्रतिभा देखी और उन्हें गंभीरता से ट्रेनिंग दी। उनका दिन स्कूल और प्रैक्टिस में गुजरता, थकावट के बावजूद अगले दिन की तैयारी में जुटी रहतीं।
पैसे की तंगी सबसे बड़ी चुनौती थी। क्रिकेट किट, जूते और प्रैक्टिस के लिए रोज़ पचास किलोमीटर बस से जाना आसान नहीं था। कई बार किराया न होने पर उधार लेना पड़ता। मौसम कोई भी हो, उनका हौसला कम नहीं हुआ। परिवार खासकर पिता का विश्वास और मां की दुआएं उनके साथ थीं।
2009 में हरमन ने भारतीय टीम में डेब्यू किया। पहली बार नीली जर्सी पहनते वक्त सारे संघर्ष याद आए। उस वक्त महिला क्रिकेट को कम तवज्जो मिली, मीडिया कवरेज भी सीमित था। लेकिन हरमन को शोहरत नहीं, मौके की तलाश थी। धीरे-धीरे उन्होंने टीम में अपनी जगह बनाई।
2017 का विश्व कप उनके करियर का बड़ा मोड़ था। सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उनकी 171 रनों की पारी ने भारत को नए मुकाम पर पहुंचाया। उस दिन भारतीय महिला क्रिकेट को पहली बार गंभीरता से देखा गया। यह जीत सिर्फ एक मैच नहीं, बल्कि एक पूरी पीढ़ी की आवाज़ थी। हरमन ने दिखाया कि मौका मिले तो महिलाएं इतिहास लिख सकती हैं।
उनका जर्सी नंबर 23 उनकी पहचान बन चुका है। वे इसे ‘लकी नंबर’ नहीं मानतीं, बल्कि कहती हैं, “जो कुछ मिला है, वो मेहनत से मिला है, किस्मत से नहीं।” यही उनकी असली ताकत है।
कप्तान बनने के बाद हरमन ने टीम का माहौल बदल दिया। उन्होंने खिलाड़ियों को डर नहीं, भरोसे के साथ खेलने की सीख दी। मैदान पर सख्त, लेकिन ड्रेसिंग रूम में सहज, वे टीम की रीढ़ बन गईं।
विदेशों में भी हरमन की छाप साफ नजर आई। वे ऑस्ट्रेलिया की बिग बैश लीग (WBBL) में खेलने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं। वहां उन्होंने अपनी आक्रामक बल्लेबाज़ी से साबित किया कि भारतीय महिला क्रिकेट किसी से कम नहीं।
2025 का ICC महिला विश्व कप उनके लिए खास था। घरेलू मैदान पर खेलने की जिम्मेदारी के साथ टीम पर दबाव भी भारी था। पिछले कुछ टूर्नामेंटों के कमजोर प्रदर्शन ने मनोबल को प्रभावित किया, लेकिन हरमन ने टीम की मानसिक तैयारी पर खास ध्यान दिया। योग और ध्यान को टीम की ट्रेनिंग में शामिल किया।
टीम ने जबरदस्त प्रदर्शन किया। फाइनल में पुराने प्रतिद्वंद्वी को हराकर पहली बार महिला क्रिकेट विश्व कप की ट्रॉफी जीती। यह जीत न केवल टीम के लिए, बल्कि भारतीय महिला क्रिकेट के लिए एक बड़ा मील का पत्थर साबित हुई।
हरमनप्रीत ने मेहनत, लगन और धैर्य के साथ वह सब हासिल किया जो मुश्किल लगता था। उनका सफर बताता है कि चुनौती जितनी बड़ी हो, उसका सामना भी उतनी ही हिम्मत से करना पड़ता है। उनकी कहानी किसी बड़ी बात की नहीं, बल्कि लगातार कोशिश करने और खुद पर भरोसा रखने की है। यही वजह है कि आज वे मैदान पर और उससे बाहर दोनों जगह खुद को साबित कर रही हैं।
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