भारत की बायोइकोनॉमी (BioEconomy) हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ी है। हाल ही में प्रकाशित इंडिया बायोइकोनॉमी रिपोर्ट ने इस बात की तस्दीक की है और साथ ही इसके महत्त्व को भी उजागर किया है। जैव-आधारित उद्योगों का हो रहा तेजी से विस्तार, नवाचार और सरकार की नीतियाँ इसे एक महत्वपूर्ण आर्थिक क्षेत्र बना रही हैं।
बायोइकोनॉमी क्या है?
बायोइकोनॉमी वह प्रणाली है जिसमें जैविक संसाधनों का उपयोग करके आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जाता है। इसमें बायोटेक्नोलॉजी, कृषि, दवा निर्माण, औद्योगिक जैव-उद्योग, हरित ऊर्जा और जैव-आधारित सामग्रियाँ शामिल हैं।
इंडिया बायोइकोनॉमी रिपोर्ट 2025 की प्रमुख बातें:
भारत की बायोइकोनॉमी 2014 में $10 बिलियन थी जो 2024 में बढ़कर $165.7 बिलियन हो गई है। इसका देश की सकल घरेलू उत्पाद में योगदान (GDP) 4.2% के करीब है। सरकारी महकमों की बात करें तो उनके अनुसार 2030 तक इसे $300 बिलियन और 2047 तक $1 ट्रिलियन करने का लक्ष्य रखा गया है। बायोइंडस्ट्रियल और बायोफार्मा सेक्टर इस वृद्धि में 83% का योगदान दे रहे हैं। इस रिपोर्ट से सबसे बड़ी बात यह पता चली कि महाराष्ट्र और कर्नाटक सबसे बड़े बायोइकोनॉमी हब हैं, जिनका बाज़ार मूल्य के आधार पर क्रमशः $35.5 बिलियन और $32.7 बिलियन का योगदान है।
बायोइकोनॉमी को बढ़ावा देने के लिए अपनायी जा रही रणनीतियाँ:
नीति आयोग और BIRAC द्वारा बायोटेक स्टार्टअप्स को समर्थन दिया जा रहा है। देश में बायोमैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कुछ विशेष योजनाएँ लागू की जा रही हैं। भारत ग्लोबल सप्लाई चेन में जैव-आधारित उत्पादों की भागीदारी अधिकाधिक कर सके, इस बात पर खास निगरानी की जा रही है। साथ ही सरकार जैव-आधारित ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए नई तकनीकों में निवेश भी कर रही है।
बायोइकोनॉमी के प्रमुख घटक
बायोफार्मा और बायोटेक स्टार्टअप्स—भारत का बायोफार्मा क्षेत्र $80 बिलियन तक पहुँच चुका है, जो इसे दुनिया के शीर्ष तीन बायोटेक हब में शामिल करता है।
बायोएग्रीकल्चर और हरित जैव-तकनीक—भारत में जैविक कृषि और स्मार्ट बायोटेक सोल्यूशन्स तेजी से विकसित हो रहे हैं। नैनो-यूरिया और बायोफर्टिलाइज़र के उपयोग से कृषि क्षेत्र में क्रांति आ रही है।
बायोमैन्युफैक्चरिंग और इंडस्ट्रियल बायोटेक—बायोमैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में एंजाइम टेक्नोलॉजी, जैव-आधारित प्लास्टिक और सिंथेटिक बायोलॉजी जैसे उद्यम तेजी से उभर रहे हैं।
चुनौतियाँ और समाधान:
अनुसंधान और नवाचार में निवेश की कमी—भारत में बायोटेक अनुसंधान और नवाचार के लिए वित्तीय निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है। शुक्र है कि सरकार ने 2024-25 में बायोइकोनॉमी क्षेत्र के लिए $1.2 बिलियन का फंड आवंटित किया है।
विनियामक बाधाएँ और नीति समर्थन—बायोटेक उद्योग को तेजी से विकसित करने के लिए सरल लाइसेंसिंग और विनियामक सुधार भी आवश्यक हैं।
बाजार तक पहुँच सुनिश्चित करना और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए आवश्यक प्रोत्साहन देना—भारतीय जैव-उद्योग को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियों को बढ़ावा देना होगा।
कुल मिलाकर इतना तो स्पष्ट हो ही रहा है कि भारत का बायोइकोनॉमी क्षेत्र देश की आर्थिक वृद्धि को नई ऊँचाइयों तक ले जाने के लिए तैयार है। लेकिन इसे सतत सरकारी समर्थन, अनुसंधान में निवेश और नवाचार की भी आवश्यकता है। बायोटेक स्टार्टअप्स, हरित जैव-ऊर्जा और बायोफार्मा सेक्टर इस क्रांति के मुख्य चालक साबित हो सकते हैं। अतः भारत को वैश्विक बायोइकोनॉमी में अग्रणी बनने के लिए दूरगामी रणनीतिक नीतियाँ अपनानी होंगी।


