भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का जीवन कई पहलुओं से भरा हुआ था, जिनमें से कई आज भी लोगों के लिए कम‑ज्ञात हैं। 14 नवंबर 1889 को प्रयागराज (पहले इलाहाबाद) में जन्मे नेहरू एक ऐसे परिवार में बड़े हुए जहाँ वैभव तो था, लेकिन उससे ज्यादा विचारों की आज़ादी थी। कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में जन्में नहेरू अपनी प्रशासनिक योग्यता और विद्वता के लिए जाने जाते थे और 18वीं शताब्दी के आरंभ में दिल्ली आकर बस गए थे। उनके पिता मोतीलाल नेहरू चाहते थे कि उनका बेटा खुले दिमाग से सोचे, सवाल उठाए और दुनिया को अपनी नज़र से समझे। शायद इसी वजह से जवाहरलाल बचपन से ही साधारण नहीं थे।
उनके सहपाठी उन्हें प्यार से “जो” कहते थे, क्योंकि उनके नाम को उच्चारण करना थोड़ा कठिन होता था। उन्हें पतंग उड़ाने का बड़ा शौक था और वे अक्सर दोस्तों के साथ इस खेल में मस्त रहते थे। नेहरूजी को प्रकृति, इतिहास और किताबें पढ़ने का बेहद शौक था। वे घंटों गहराई से पढ़ते और हर चीज़ के पीछे का कारण जानने की कोशिश करते।

विदेश में पढ़ाई के दौरान, खासकर ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज में, उन्होंने खुली सोच और आधुनिक विचारों को आत्मसात किया। वहाँ वे अपने साथियों के बीच पतंग उड़ाने का शौक फैलाने वाले थे। पढ़ाई पूरी कर भारत लौटे तो वे सिर्फ कानून के विद्यार्थी नहीं थे, बल्कि देश की सेवा के लिए प्रतिबद्ध एक युवा नेता बन चुके थे।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नेहरूजी को ग्यारह बार जेल जाना पड़ा, जो कुल मिलाकर लगभग नौ साल (3,259 दिन) के बराबर है। जेल की कोठरियों में बिताए गए समय ने उन्हें और भी दृढ़ और संकल्पित बना दिया। अपने कैद के दौरान, उन्होंने अपनी बेटी इंदिरा गांधी की शादी के लिए हल्की गुलाबी खादी की साड़ी बुनी थी, जो बाद में सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी द्वारा भी अपनी शादी के दिन पहनी गई।
उनका परिवार उनके जीवन का सबसे बड़ा सहारा था। पत्नी कमला नेहरू के निधन का दर्द वे जीवन भर सहते रहे, जबकि बेटी इंदिरा गांधी उनकी सबसे बड़ी संबल और मार्गदर्शक बनीं। वे पिता के साथ-साथ दोस्त और सलाहकार भी थे।
नेहरूजी को गुलाबों से गहरा लगाव था। वे कहते थे कि गुलाब की नाजुकता और खुशबू हमें जीवन में सौम्यता और प्रेम बनाए रखने की सीख देती है। उनके लिए गुलाब सिर्फ फूल नहीं थे, बल्कि जीवन की खूबसूरती और प्रेम का प्रतीक थे। इसी वजह से उन्हें ‘गुलाबों के दीवाने’ के नाम से भी जाना जाता है।
जानवरों से उनका प्रेम भी कम नहीं था। वे अपने घर में कई पालतू जानवर रखते थे, जिनमें पांडा भी शामिल था। जानवरों के साथ उनका लगाव उनकी संवेदनशीलता को दर्शाता है।
नेहरूजी को बच्चों से खास लगाव था। वे हमेशा कहते थे, “बच्चे देश का भविष्य हैं।” वे बच्चों के अधिकारों और शिक्षा के हिमायती थे। उनका मानना था कि बच्चों को समझना, उनकी शिक्षा और विकास के लिए काम करना देश की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। इसलिए उनके जन्मदिन, 14 नवंबर को भारत में बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। वे बच्चों के लिए ‘चाचा नेहरू’ के नाम से जाने जाते थे।
15 अगस्त 1947 को जब भारत आज़ाद हुआ, नेहरू ने ‘नए युग में प्रवेश’ का संदेश दिया। यह भाषण केवल एक संबोधन नहीं था, बल्कि एक नए भारत की नींव रखने वाले नेता की आवाज़ थी। उन्होंने देश के विकास के लिए बड़े बांध, उद्योग, विज्ञान के केंद्र और उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थापना की।
उन्होंने शिक्षा को एक आधुनिक और प्रगतिशील राष्ट्र के लिए अहम बताया। उनके योगदान से भारत में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM), अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) जैसे प्रतिष्ठित संस्थान स्थापित हुए। वे विज्ञान, तकनीकी शिक्षा, और धर्मनिरपेक्षता के प्रबल समर्थक थे।
नेहरू ने भारत को विश्व मंच पर एक स्वतंत्र और स्वतंत्र सोच वाला देश बनाने में भी अहम भूमिका निभाई। उन्होंने ‘गुटनिरपेक्ष नीति’ की नींव रखी, जिससे भारत ने किसी भी वैश्विक सत्ता के दबाव में आए बिना अपनी नीति तय की।
1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद नेहरू का स्वास्थ्य बिगड़ा और 27 मई 1964 को उनका निधन हो गया। उनके अंतिम संस्कार में लगभग 15 लाख लोग शामिल हुए। वे केवल भारत के पहले प्रधानमंत्री नहीं थे, बल्कि एक ऐसे इंसान थे जिन्होंने अपने पूरे जीवन से देश की सेवा की।
उनका जीवन संघर्ष, प्रेम, शिक्षा और देशभक्ति का मेल था। वे एक संवेदनशील विचारक, एक दूरदर्शी नेता और एक प्यार करने वाले पिता थे। उनकी कहानी आज भी प्रेरणा देती है कि कैसे एक इंसान अपने जज़्बे और समर्पण से पूरे देश की दिशा बदल सकता है।
यह जानना रोचक है कि अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस हर साल 20 नवंबर को मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने 1954 में इस दिन को सार्वभौमिक बाल दिवस घोषित किया था। 20 नवंबर इसलिए चुना गया क्योंकि 1959 में इसी दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बाल अधिकारों की घोषणा को अपनाया था। भारत भी इस दिन को बाल कल्याण के मुद्दों पर चर्चा के लिए मानता है। लेकिन भारत में इस उत्सव का मुख्य आयोजन 14 नवंबर को होता है। यह तारीख एक महान राष्ट्रीय नेता के प्रति सम्मान और उनके बच्चों के प्रति गहरे प्रेम को यादगार बनाती है।
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