भारत में जब बात रिश्तों की आती है, तो हर त्योहार में एक कहानी छिपी होती है — कुछ भक्ति की, कुछ प्यार की और कुछ इंतज़ार की। करवा चौथ भी ऐसा ही त्योहार है, जहाँ इंतज़ार सिर्फ़ चाँद का नहीं होता, बल्कि उस पल का होता है जब प्यार और विश्वास का संगम नज़र आता है।
हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला यह पर्व उत्तर भारत की महिलाओं के लिए बेहद ख़ास होता है। सुबह सूरज उगने से पहले सास द्वारा दी गई सरगी खाकर महिलाएँ पूरा दिन बिना खाए-पिए व्रत रखती हैं। यह व्रत सिर्फ़ पति की लंबी उम्र के लिए नहीं, बल्कि रिश्ते में मजबूती और प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए भी माना जाता है।
कहा जाता है कि करवा चौथ का नाम “करवा” यानी मिट्टी के बर्तन और “चौथ” यानी चौथी तिथि से मिलकर बना है। यह परंपरा सदियों पुरानी है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जब अर्जुन नीलगिरी पर्वत पर तपस्या में लीन थे, तब पांडवों पर अनेक संकट आए। ऐसे में द्रौपदी ने श्रीकृष्ण से मदद मांगी। श्रीकृष्ण ने कहा कि कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन करवा माता का व्रत करो। द्रौपदी ने व्रत रखा, और पांडव सभी संकटों से मुक्त हुए।
एक और कथा वीरावती की कही जाती है, जिसने व्रत अधूरा तोड़ा और उसके पति की मृत्यु हो गई। लेकिन उसके सच्चे प्रेम और आस्था ने यमराज को भी झुका दिया और उसे अपने पति का जीवन वापस मिला। तभी से कहा जाता है — “करवा चौथ का व्रत प्रेम और आस्था का सबसे सुंदर रूप है।”
उत्तर भारत के कई राज्यों में करवा चौथ का नज़ारा सबसे अधिक देखने को मिलता है — पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की गलियों में शाम ढलते ही महिलाएँ सोलह शृंगार से सजी-धजी दिखाई देती हैं। हाथों में मेहंदी, थाली में दीया, और आँखों में अपने जीवनसाथी की सलामती की दुआ — हर चेहरे पर एक अलग ही चमक होती है। शाम को सभी महिलाएँ मिलकर करवा चौथ की कथा सुनती हैं और उस पल का इंतज़ार करती हैं जब आसमान में चाँद झाँकता है।
2025 के करवा चौथ का चाँद अधिकांश शहरों में रात करीब 8:12 बजे दिखाई देगा, जबकि मुंबई और पुणे जैसे पश्चिमी इलाक़ों में यह लगभग 8:25 बजे तक नज़र आएगा। जब महिलाएँ छलनी से चाँद को देखती हैं और फिर अपने पति का चेहरा निहारती हैं, वह क्षण भावनाओं से भरा होता है — जैसे पूरा आसमान उस पल का साक्षी बन गया हो।
दिल्ली की सोनिया मल्होत्रा कहती हैं, “ये व्रत मेरे लिए सिर्फ़ परंपरा नहीं, एहसास है। जब मैं बिना खाए-पिए दिन गुज़ारती हूँ, तो लगता है जैसे मैं अपने रिश्ते को और मज़बूत कर रही हूँ।” वहीं जयपुर की नेहा शर्मा मुस्कुराते हुए कहती हैं, “करवा चौथ सिर्फ़ एक रस्म नहीं, दो आत्माओं के बीच की डोर है, जो हर साल और भी गहरी हो जाती है।”
आज के दौर में जहाँ रिश्ते जल्दी टूट जाते हैं, वहाँ करवा चौथ हमें याद दिलाता है कि सच्चा प्यार सब्र, समर्पण और विश्वास से बनता है। चाँद की तरह ही यह त्योहार हमें सिखाता है कि दूर रहकर भी रोशनी दी जा सकती है, और इंतज़ार में भी अपनापन छिपा होता है।
“चाँद निकले जब दुआओं के संग,
तो हर दिल में बस एक नाम होता है — प्यार।”
करवा चौथ सिर्फ़ एक दिन का व्रत नहीं, बल्कि उस अमर भावना का प्रतीक है जो हर भारतीय स्त्री के दिल में बसी है — प्यार निभाने की, हर हाल में साथ रहने की और अपने रिश्ते को भगवान से भी ऊपर मानने की।
करवा चौथ की थाली बहुत ख़ास होती है। महिलाएँ एक साथ बैठकर थाली की अदला-बदली करती हैं। थाली को सजाने के लिए पहले उसे साफ कर लें, फिर उस पर स्वस्तिक का चिन्ह बनाएं। हल्दी, सिंदूर और रंगोली डालकर थाली को सुंदर बनाएं। पूजा की सारी सामग्री — दीया, चावल, मिठाई, करवा, पानी और रोली — थाली में रखें।
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में जागकर स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजास्थल की सफाई करें। गंगाजल का छिड़काव कर सभी देवी-देवताओं की पूजा करें। व्रत का संकल्प लें। शाम के समय माँ पार्वती, भगवान शिव, गणपति बप्पा और भगवान कार्तिकेय की पूजा करें। करवा चौथ व्रत कथा का पाठ करें। चंद्रोदय के बाद चाँद की पूजा करें, छलनी से दर्शन करें, अर्घ्य दें और फिर पति का चेहरा देखें। आरती उतारें, पति के हाथ से पानी पीकर व्रत का पारण करें
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