“मुझे मारने के लिए तुम्हारे पास कोई शक्ति नहीं, मेरे कर्म ही मेरी शक्ति हैं।”
यह संवाद जिसने पंकज धीर को ‘महाभारत’ के कर्ण के रूप में अमर बना दिया, आज उसी संवाद की तरह उनकी ज़िंदगी भी प्रेरणा बन चुकी है। अभिनेता पंकज धीर, जिन्होंने 1988 में बी.आर. चोपड़ा की टीवी महागाथा महाभारत में कर्ण का किरदार निभाकर दर्शकों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी, अब हमारे बीच नहीं रहे। बुधवार को 68 वर्ष की आयु में उन्होंने लंबी बीमारी के बाद मुंबई में अंतिम सांस ली।
पंकज धीर का जन्म 9 नवंबर 1956 को पंजाब में हुआ। बचपन से ही उनमें अभिनय के लिए जुनून और कला की गहरी रुचि थी। शुरुआती दिनों में उन्होंने छोटे-मोटे रोल्स किए, लेकिन उनके अंदर की मेहनत और समर्पण उन्हें जल्दी ही बड़े प्रोजेक्ट्स तक ले गई।
उनका करियर महाभारत के कर्ण के किरदार से चमका। सेट पर उनके काम का तरीका सभी को प्रभावित करता था। एक किस्सा यह भी है कि महाभारत की शूटिंग के दौरान पंकज कई बार बिना भोजन या ब्रेक के लंबे सीन शूट करते। वह कहते थे, “कर्ण का हर दर्द मेरे भीतर महसूस होना चाहिए, तभी मैं सही रूप दे पाऊंगा।” यह समर्पण ही उन्हें अलग बनाता था।
‘महाभारत’ के बाद पंकज धीर ने कई लोकप्रिय धारावाहिकों में अभिनय किया, जिनमें चंद्रकांता, द ग्रेट मराठा, कानून और ससुराल सिमर का शामिल हैं। उनकी दमदार आवाज़, राजसी व्यक्तित्व और गहरी आंखों ने हर किरदार को जीवंत बना दिया। पंकज का मानना था कि किरदार को निभाने के लिए उसे समझना ज़रूरी है। इसलिए वह हर सीन में पूरी शिद्दत से उतरते थे।
फिल्मों की बात करें तो उन्होंने सौगंध (1991), सड़क (1991), और टार्ज़न: द वंडर कार (2004) जैसी फिल्मों में भी शानदार प्रदर्शन किया। उनके सह-कलाकार अक्सर कहते थे कि पंकज सेट पर बेहद अनुशासित और शांत रहते थे। वह नए कलाकारों को प्रोत्साहित करते और उन्हें सिखाते थे कि अभिनय केवल संवाद बोलना नहीं, बल्कि भावनाओं को जीना है।
उनका निजी जीवन भी उतना ही प्रेरक था। उनकी पत्नी अनीता धीर कला और फैशन की दुनिया से जुड़ी थीं, जबकि उनका बेटा निकितिन धीर पिता के नक्शे-कदम पर चलते हुए बॉलीवुड में अपनी पहचान बना चुके हैं। निकितिन ने ‘चेन्नई एक्सप्रेस’, ‘डब्बा’, और कई अन्य फिल्मों में काम किया है। पंकज अपने बेटे पर गर्व करते थे और हमेशा कहते थे, “अभिनय में सफलता नहीं, निरंतरता ज़रूरी है।”
कुछ दिलचस्प बातें पंकज के बारे में कम लोग जानते हैं। उन्हें ऐतिहासिक और पौराणिक भूमिकाएँ निभाना बहुत पसंद था, लेकिन वह हर किरदार में नई ऊर्जा और नवाचार लाना जानते थे। सेट पर वह केवल डायलॉग बोलने तक सीमित नहीं रहते थे। वह हरेक दृश्य की भावनाओं में पूरी तरह डूब जाते। एक बार कर्ण की एक भावुक सीन की शूटिंग के दौरान वह इतना भावुक हो गए कि उनकी आंखों में आंसू आ गए और वह इसे वास्तविक भावनाओं के साथ शूट करना चाहते थे।
पंकज धीर ने केवल अभिनय ही नहीं किया, बल्कि नई पीढ़ी के कलाकारों को प्रशिक्षित करने में भी योगदान दिया। उनकी एक्टिंग एकेडमी ने कई युवा कलाकारों को सही दिशा दी। वह उन्हें शूटिंग के तकनीकी पहलुओं से परिचित कराते और स्क्रीन पर बेहतर प्रदर्शन करने के तरीके सिखाते। कम लोग जानते हैं कि पंकज को कैमरा और सेट की बारीकियों में भी गहरी रुचि थी।
उनकी जिंदगी संघर्षों और चुनौतियों से भरी रही। लंबे शूटिंग घंटों, कठिन दृश्यों और मौसम की बाधाओं के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी। एक किस्सा यादगार है: उन्होंने कभी-कभी धूप में कई घंटों तक कर्ण के भारी कवच में शूटिंग की। सेट पर सहकर्मी हैरान रहते, लेकिन पंकज कहते थे, “कर्ण का दर्द मुझे महसूस करना है, तभी किरदार सही लगेगा।”
पंकज धीर के योगदान की सबसे बड़ी मिसाल उनके किरदार और दर्शकों के दिल में उनकी जगह है। भले ही अब वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके बेटे, परिवार और उनकी यादें उनके प्रभाव को जीवित रखती हैं। उनका अभिनय, उनकी मेहनत और उनके जीवन का दृष्टिकोण आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बने रहेंगे।
पंकज धीर पिछले कई महीनों से कैंसर से जूझ रहे थे और उन्हें अक्सर अस्पताल में भर्ती कराया जाता था। उनके अंतिम संस्कार का कार्यक्रम बुधवार शाम 4:30 बजे मुंबई के सांताक्रूज़ स्थित पवन हंस श्मशान भूमि में संपन्न हुआ। फिल्म और टीवी जगत के कई नामी कलाकारों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।
आज जब वह हमारे बीच नहीं हैं, तो उनका जाना एक युग का अंत जैसा लगता है। लेकिन उनकी यादें, उनके डायलॉग और उनका अभिनय हमेशा ज़िंदा रहेंगे। उनके बेटे निकितिन धीर और उनके परिवार ने कहा है कि वे पंकज की विरासत को आगे बढ़ाएंगे — एक ऐसी विरासत जिसमें कला, अनुशासन और इंसानियत का संगम है।
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