जम्मू और कश्मीर के सरकारी स्कूल डिजिटल युग में अभी भी काफी पीछे हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राज्य में कुल 18,724 सरकारी स्कूल हैं, लेकिन इनमें से केवल 43.10% स्कूलों में ही कंप्यूटर की सुविधा उपलब्ध है। इंटरनेट की सुविधा सिर्फ 49.10% स्कूलों में मौजूद है। इसका मतलब यह है कि लगभग आधे स्कूल डिजिटल शिक्षा के इस दौर से पूरी तरह वंचित हैं।
विशेष रूप से ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्रों के स्कूलों में डिजिटल उपकरणों की कमी अधिक है। कई स्कूलों में न तो कंप्यूटर हैं और न ही तेज इंटरनेट कनेक्शन। शिक्षा विभाग का कहना है कि बजट की कमी और भौगोलिक चुनौतियों के कारण इन स्कूलों में तकनीकी सुविधाएँ प्रदान करना कठिन रहा। इसके अलावा, बीएसएनएल जैसी सरकारी इंटरनेट सेवा प्रदाताओं की धीमी कार्यप्रणाली भी समस्या को बढ़ा रही है।
कोविड-19 महामारी के दौरान यह कमी और भी गंभीर रूप से महसूस की गई। जब देशभर के स्कूलों में ऑनलाइन शिक्षा अपनाई जा रही थी, तब ग्रामीण और कमजोर आर्थिक वर्ग के छात्रों को इससे सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। घर पर स्मार्टफोन या लैपटॉप की कमी, धीमा इंटरनेट और डिजिटल साक्षरता का अभाव उन्हें पीछे छोड़ गया। विशेषज्ञ मानते हैं कि आज डिजिटल साक्षरता उतनी ही महत्वपूर्ण है जितना कि पढ़ना और लिखना, और इसके बिना बच्चे आधुनिक शिक्षा में पीछे रह सकते हैं।
सिर्फ डिजिटल सुविधाएँ ही नहीं, बल्कि बुनियादी सुविधाओं में भी स्कूल पीछे हैं। स्वच्छता की बात करें तो लड़कों के लिए टॉयलेट लगभग 95.58% स्कूलों में उपलब्ध हैं, जबकि लड़कियों के लिए यह सुविधा केवल 88.94% स्कूलों में है। यह असमानता खासकर लड़कियों की शिक्षा में बाधा डालती है, क्योंकि सुरक्षित और अलग टॉयलेट न होने की वजह से कई छात्राएं स्कूल छोड़ देती हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि डिजिटल शिक्षा, इंटरनेट कनेक्टिविटी और स्वच्छता की कमी न केवल छात्रों की शैक्षिक गुणवत्ता पर असर डालती है, बल्कि उनकी शारीरिक और मानसिक सुरक्षा को भी प्रभावित करती है। बच्चे यदि सही संसाधनों और सुविधा के साथ पढ़ाई नहीं कर पा रहे, तो उनका आत्मविश्वास और सीखने की क्षमता दोनों प्रभावित होंगे।
इस स्थिति को सुधारने के लिए सरकार और शिक्षा विभाग को न केवल बजट बढ़ाने की जरूरत है, बल्कि तकनीकी प्रशिक्षण, डिजिटल उपकरणों की उपलब्धता और स्कूलों में इंटरनेट की गुणवत्ता पर भी ध्यान देना होगा। विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि डिजिटल कक्षाएँ, ऑनलाइन शिक्षण सामग्री, शिक्षक प्रशिक्षण और समय पर तकनीकी समर्थन से स्कूलों को डिजिटल शिक्षा में पीछे नहीं रहना चाहिए।
जम्मू-कश्मीर के छात्रों के लिए यह समय निर्णायक है। यदि सरकार और शिक्षा संस्थान तेजी से कदम नहीं उठाते, तो युवा पीढ़ी का भविष्य डिजिटल असमानता की वजह से प्रभावित हो सकता है। वहीं, यदि सही उपाय किए जाएं, तो यह राज्य के स्कूलों के लिए डिजिटल शिक्षा का नया युग शुरू कर सकता है और छात्रों को आधुनिक तकनीकी और वैश्विक शिक्षा से जोड़ सकता है।
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