कुछ साल पहले तक जब भी हम किसी हवाई जहाज़ में बैठते थे, मन में एक भरोसा होता था—कि सब कुछ ठीक रहेगा, क्योंकि ये ‘सबसे सुरक्षित यात्रा का माध्यम’ माना जाता है। लेकिन हाल के दिनों में एक के बाद एक घटनाएँ, हादसे, और खराबी की ख़बरों ने आम लोगों के मन में डर और सवाल दोनों भर दिए हैं। विमानन क्षेत्र में बढ़ते हादसों ने यात्रियों के भरोसे को डगमगा दिया है। आखिर क्यों हो रहा है ऐसा? क्या टेकऑफ से पहले सुरक्षा जाँच में कमी रह जाती है? आइए जानते है।
हवाई जहाज़ों का भरोसा डगमगाया क्यों?
हाल के वर्षों में विमान दुर्घटनाएँ, तकनीकी खामियाँ, और बम धमकियों जैसी घटनाएँ सुर्खियों में रही हैं। अहमदाबाद में एयर इंडिया की उड़ान AI-171 (बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर) का हादसा, जिसमें 260 से अधिक लोगों की जान चली गई, ने पूरे देश को झकझोर दिया। इसके अलावा, दिल्ली से बंगलुरु और दिल्ली से शिकागो जाने वाली उड़ानों को मिली बम धमकियाँ, भले ही फर्जी थीं, लेकिन इनसे यात्रियों में डर बढ़ा है। ये घटनाएँ न केवल ‘दुर्घटना’ हैं, बल्कि एक चेतावनी हैं कि विमानन क्षेत्र में गंभीर समस्याएँ हैं।
विमानन क्षेत्र में समस्याओं के कारण
1. फाइनेंशियल प्रेशर
कोविड-19 महामारी के बाद एविएशन सेक्टर को जबरदस्त आर्थिक झटका लगा। कई एयरलाइंस को भारी घाटा हुआ, जिसके चलते लागत घटाने के लिए स्टाफ कटौती, मेंटेनेंस में देरी, और कर्मचारी प्रशिक्षण में कमी जैसी समस्याएँ सामने आईं। इससे विमानों की सुरक्षा पर सीधा असर पड़ रहा है। लागत बचाने के चक्कर में कई बार पुराने विमानों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिनमें तकनीकी खराबी का खतरा ज़्यादा होता है।
2. तकनीकी खामियाँ और रखरखाव में लापरवाही
विमानन विशेषज्ञों के अनुसार, कई हादसे विमानों के रखरखाव में लापरवाही और तकनीकी खामियों के कारण हो रहे हैं। डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (DGCA) के ऑडिट में दिल्ली और मुंबई जैसे प्रमुख हवाई अड्डों पर धुंधली रनवे लाइनें, घिसे हुए टायर, और खराब ग्राउंड हैंडलिंग उपकरण जैसी खामियाँ पाई गईं। एविएशन सेफ्टी कंसल्टेंट कैप्टन मोहन रंगनाथन ने कहा कि एयरलाइंस वित्तीय दबाव, प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी, और थकान जैसे मुद्दों के कारण रखरखाव में कोताही बरत रही हैं।
3. स्टाफ की कमी और थकावट
नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA), नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो (BCAS), और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) में कर्मचारियों की 25-53% कमी है। पायलट से लेकर ग्राउंड स्टाफ तक, कर्मचारियों की कमी और ज़्यादा काम का बोझ गलतियों की संभावना को बढ़ाता है। कई बार स्टाफ की थकावट के कारण सही निर्णय लेने में चूक हो जाती है, जो हादसों का कारण बनती है।
4. पुराने हो रहे एयरक्राफ्ट्स
कई एयरलाइंस पुराने विमानों का उपयोग कर रही हैं, जिनमें तकनीकी खराबी का खतरा अधिक होता है। उदाहरण के लिए, बोइंग 737 मैक्स के 2018 और 2019 में हुए हादसों में 346 लोग मारे गए थे, जिसके बाद इस मॉडल को दो साल के लिए प्रतिबंधित किया गया था। हाल के अहमदाबाद हादसे में भी बोइंग 787-8 शामिल था, जिसने कंपनी की सुरक्षा और गुणवत्ता पर सवाल उठाए।
5. पायलट और क्रू की गलतियाँ
रिपोर्ट्स के अनुसार, 53% विमान दुर्घटनाएँ पायलट की गलतियों के कारण होती हैं। खराब मौसम में सही निर्णय न लेना, यांत्रिक समस्याओं को नजरअंदाज करना, या सुरक्षित लैंडिंग सुनिश्चित न कर पाना इसके प्रमुख कारण हैं। नेपाल में 2024 में हुआ सौर्य एयरलाइंस का हादसा, जिसमें विमान टेकऑफ के तुरंत बाद रनवे पर क्रैश हो गया, इसका उदाहरण है।
6. खराब मौसम और एयर ट्रैफिक कंट्रोल की लापरवाही
खराब मौसम 12% दुर्घटनाओं का कारण बनता है, लेकिन यह अकेला कारक नहीं है। एयरलाइंस और एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) की ओर से खराब मौसम में उड़ान की अनुमति देना या गलत निर्देश देना भी हादसों को बढ़ाता है। 1991 में लॉस एंजेलिस हवाई अड्डे पर ATC की गलती से दो विमानों की टक्कर में 35 लोग मारे गए थे।
7. बम धमकियाँ और सुरक्षा उल्लंघन
हाल के महीनों में भारत में कई उड़ानों को बम धमकियाँ मिलीं, जैसे दिल्ली से बंगलुरु और दिल्ली से शिकागो जाने वाली उड़ानों को। इनमें ज्यादातर धमकियाँ फर्जी थीं, लेकिन इनसे यात्रियों में डर और अविश्वास बढ़ा है। सुरक्षा एजेंसियाँ इन धमकियों को देने वालों को तुरंत पकड़ने में नाकाम रही हैं, जो एक कारगर तकनीकी तंत्र की कमी को दर्शाता है।
मेंटेनेंस और सेफ़्टी चेक में लापरवाही?
सबसे बड़ा सवाल यही है—क्या उड़ान से पहले पूरी तरह से जाँच नहीं होती? दरअसल, सुरक्षा जाँच तो होती है, लेकिन कई बार जल्दबाज़ी, वाणिज्यिक दबाव, या तकनीकी टीमों पर ज़्यादा बोझ के कारण ये अधूरी रह जाती है। DGCA के ऑडिट में पाया गया कि कई विमानों के सिम्युलेटर पुराने थे और उनके कॉन्फ़िगरेशन विमान से मेल नहीं खाते। इसके अलावा, ग्राउंड स्टाफ और तकनीशियनों को उचित प्रशिक्षण की कमी भी एक बड़ी समस्या है।
यात्री पूछ रहे हैं:
- अगर जहाज़ में तकनीकी खराबी है, तो उसे उड़ाने की इजाज़त कैसे दी जाती है?
- क्या यात्रियों की जान से ज़्यादा महत्त्व ‘ऑन टाइम डिपार्चर’ को दिया जा रहा है?
- क्यों नहीं होती हर बार उड़ान से पहले पूरी तरह से जाँच?
हादसे और घटनाएँ—बस ‘दुर्घटना’ नहीं, चेतावनी हैं
हाल में कई घटनाएँ हुईं—कहीं रनवे पर आग लगी, कहीं लैंडिंग गियर फेल हुआ, कहीं हवा में ही बर्ड हिट। ये सब हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या हम हवाई यात्रा के दौरान वाकई सुरक्षित हैं? ये घटनाएँ केवल दुर्घटनाएँ नहीं, बल्कि विमानन क्षेत्र में सुधार की तत्काल आवश्यकता की चेतावनी हैं।
आगे क्या किया जा सकता है?
विमानन क्षेत्र में सुरक्षा बढ़ाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
- मेंटेनेंस स्टैंडर्ड्स को कड़ा करना: विमानों के रखरखाव और निर्माण में अंतरराष्ट्रीय मानकों का सख्ती से पालन हो।
- सेफ़्टी चेक्स को जिम्मेदारी की तरह लेना: सुरक्षा जाँच को औपचारिकता की तरह नहीं, बल्कि जिम्मेदारी की तरह लिया जाए।
- कर्मचारी प्रशिक्षण: पायलट, क्रू, और ग्राउंड स्टाफ के लिए नियमित और उन्नत प्रशिक्षण अनिवार्य हो।
- नियामक स्वायत्तता: DGCA को अधिक स्वायत्तता और संसाधन दिए जाएँ, ताकि वह कठोर निगरानी और जुर्माना लागू कर सके।
- पब्लिक को जानकारी: यात्रियों को उनकी फ्लाइट की सुरक्षा स्थिति के बारे में पारदर्शी जानकारी मिलनी चाहिए।
- तकनीकी तंत्र: बम धमकियों और साइबर खतरों से निपटने के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग हो।
- न्यायिक हस्तक्षेप: 2018 की घाटकोपर दुर्घटना की तरह, न्यायपालिका को नियामक विफलताओं पर सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
क्या हवाई जहाज़ सभी नियमों का पालन करते हैं?
नहीं, हवाई जहाज़ हमेशा सभी नियमों का पूरी तरह पालन नहीं करते। कई बार जल्दबाज़ी, वित्तीय दबाव, या कर्मचारियों की कमी के कारण सुरक्षा जाँच अधूरी रह जाती है। DGCA के ऑडिट में पाया गया कि कुछ हवाई अड्डों पर रनवे की स्थिति खराब थी और विमानों का रखरखाव ठीक नहीं था। पुराने विमानों का उपयोग और अपर्याप्त प्रशिक्षण भी नियमों के उल्लंघन का कारण बनता है।
हवाई जहाज़ आज भी एक तेज़ और ज़रूरी साधन है, लेकिन जब जान की बात हो, तो ‘स्पीड’ से पहले ‘सेफ़्टी’ को चुनना ज़रूरी है। एक-एक घटना हमें ये बताती है कि आँख मूँदकर भरोसा करने का समय चला गया है। अब सवाल पूछना ज़रूरी है—क्योंकि सवाल ही जवाब बनते हैं। विमानन क्षेत्र को सुधारने के लिए सरकार, नियामक, और एयरलाइंस को मिलकर काम करना होगा ताकि हवाई यात्रा फिर से सुरक्षित और भरोसेमंद बन सके।


