हर साल 3 मई को हम प्रेस की स्वतंत्रता को याद करते हैं, वो आज़ादी जो कई देशों में अब भी खतरे में है। यह दिन सिर्फ़ एक तारीख नहीं है, बल्कि एक ज़िम्मेदारी की याद दिलाता है। सरकारें प्रेस की आज़ादी का सम्मान करें और पत्रकार अपने पेशे की नैतिक ज़रूरतों पर सोचें।
इस साल का विषय बिलकुल मौजूदा समय से जुड़ा हुआ है:
“ब्रेव न्यू वर्ल्ड में रिपोर्टिंग – प्रेस की आज़ादी और मीडिया पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का असर।”
जब पत्रकारिता के सामने AI खड़ा है
सच कहें तो AI ने पत्रकारिता का तरीका ही बदल दिया है। अब रिपोर्टर जांच-पड़ताल में इसका इस्तेमाल कर रहे हैं, रिपोर्टिंग और लेखन का काम तेज़ हुआ है, कई भाषाओं में अनुवाद आसान हुआ है और आंकड़ों का विश्लेषण भी बेहतर हुआ है।
लेकिन कहानी का दूसरा पहलू भी है। यही AI झूठ फैलाने का ज़रिया भी बन सकता है। डीपफेक वीडियोज़, फर्ज़ी खबरें, पक्षपाती एल्गोरिदम और निगरानी टेक्नोलॉजी जैसी चीज़ें पत्रकारों की सुरक्षा को खतरे में डाल सकती हैं।
और एक और बात… जब AI खुद खबरें बनाने लगेगा, तो असली पत्रकारों का क्या होगा? क्या उन्हें न्यायपूर्ण भुगतान मिलेगा? क्या पारंपरिक मीडिया ज़िंदा रह पाएगा?
इस दिन का असली मतलब
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस सिर्फ़ तकनीक या बदलाव की बात नहीं करता। ये उन बहादुर पत्रकारों को याद करने का दिन भी है जो सच दिखाने की कीमत अपनी जान देकर चुकाते हैं। कई देशों में आज भी पत्रकारों को डर, दबाव और हिंसा का सामना करना पड़ता है।
ये दिन पहली बार 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने घोषित किया था। इसकी शुरुआत 1991 के विंडहोक डिक्लेरेशन से हुई थी, जब अफ्रीकी पत्रकारों ने स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया की ज़रूरत पर ज़ोर दिया था।
ब्रुसेल्स में होगा वैश्विक आयोजन
इस बार का वैश्विक कार्यक्रम 7 मई को ब्रुसेल्स के बोज़ार सेंटर में होगा, जहां दुनिया भर से पत्रकार, नीति-निर्माता और सामाजिक संगठनों के लोग मिलेंगे। चर्चा का फोकस होगा — कैसे AI को इस तरह इस्तेमाल करें कि वो पत्रकारिता को मज़बूत करे, ना कि उसे कमजोर करे।
इस मौके पर UNESCO/Guillermo Cano वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम पुरस्कार भी दिया जाएगा, उन पत्रकारों को जो सच और आज़ादी के लिए सबसे कठिन परिस्थितियों में भी डटे रहे।


