कुछ चेहरे बार-बार पर्दे पर दिखते हैं, पर कभी उबाऊ नहीं लगते। उनकी मौजूदगी हर किरदार को सच्चा बना देती है। अच्युत पोतदार ऐसे ही कलाकार थे। चाहे ‘थ्री इडियट्स’ का प्रोफेसर हो या किसी टीवी सीरियल का पड़ोसी, उन्होंने हर भूमिका को अपने अंदाज़ से यादगार बनाया।

18 अगस्त 2025 को मुंबई में उनका निधन हो गया। उम्र थी 91 साल। वे मध्य प्रदेश के जबलपुर में पैदा हुए। अच्युत पोतदार का सफर सिर्फ सिनेमा तक सीमित नहीं रहा। फिल्मों से पहले उन्होंने भारतीय सशस्त्र बलों में सेवा की। इसके बाद उन्होंने इंडियन ऑयल कंपनी में भी काम किया। लेकिन अभिनय के लिए उनके जुनून ने उन्हें एक नया रास्ता दिया। 1980 के दशक में उन्होंने फिल्मों और टेलीविजन में कदम रखा और धीरे-धीरे खुद को एक ऐसे अभिनेता के रूप में स्थापित किया जिसने कभी भी किरदार की लंबाई या भव्यता को महत्व नहीं दिया। उनके लिए अभिनय ही सबसे बड़ा मकसद था।

कैमरे पर भरोसेमंद चेहरा

पोतदार का करियर आंकड़ों में भी अनोखा है। 125 से ज्यादा फिल्में, 95 टीवी शो, 26 नाटक और 45 विज्ञापन। इतनी विशाल यात्रा किसी भी अभिनेता के लिए गर्व की बात है। पर उनकी असली ताकत यह थी कि हर रोल में वे बिल्कुल असली लगते थे। चाहे वह इतिहास पर आधारित टीवी सीरीज़ भारत एक खोज हो या कॉलेज का सीन, वे सहज ही दर्शकों को कहानी का हिस्सा बना देते थे।

थ्री इडियट्स से लेकर मराठी सिनेमा तक

2009 की फिल्म थ्री इडियट्स में प्रोफेसर की उनकी भूमिका आज भी याद की जाती है। आमिर खान और बाकी कलाकारों के बीच भी उनका किरदार दर्शकों पर छाप छोड़ गया। वहीं, मराठी फिल्मों और नाटकों में भी उन्होंने गहरी छाप छोड़ी। उनकी आवाज़, हावभाव और सादगी ने हर भाषा के दर्शकों को जोड़कर रखा।

कई लोग दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे का वह मशहूर ट्रेन वाला दृश्य याद करते हैं। वहां भले ही उनकी स्क्रीन टाइम छोटी थी, पर उपस्थिति इतनी मजबूत थी कि दर्शक उन्हें भूल नहीं पाए। यही उनकी खासियत थी, छोटा रोल भी बड़ा बनाना।

करीबी लोग बताते हैं कि पोतदार बेहद अनुशासित और शांत स्वभाव के इंसान थे। कॉरपोरेट दुनिया की पृष्ठभूमि होने के बावजूद वे कभी अभिनय की चमक-दमक में खोए नहीं। उन्हें बस काम से प्यार था। शायद यही वजह थी कि हर निर्देशक उन्हें अपने प्रोजेक्ट का भरोसेमंद हिस्सा मानता था

उनके जाने से सिनेमा जगत ने एक सच्चा “किरदार कलाकार” खो दिया है। वे स्टार नहीं बने, लेकिन आम दर्शकों की यादों में हमेशा बने रहेंगे। जब भी थ्री इडियट्स या दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे जैसी फिल्में देखी जाएंगी, उनकी मुस्कान और गंभीर चेहरा पर्दे पर जीवित रहेगा।

अच्युत पोतदार हमें यह सिखाकर गए हैं कि असली कला वही है जो दिल को छू जाए, चाहे वह कितनी भी छोटी भूमिका क्यों न हो।

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