पाकिस्तानी अखबार डॉन का नाम हर कोई जानता है। पाकिस्तान की किसी तारीफ की बात हो, तो उस में अक्सर इस अखबार का जिक्र भी होता है। लेकिन 12 नवंबर के अंक में इस अखबार ने ऐसी गलती कर दी, जिसने इसकी साख को गंभीर नुकसान पहुंचाया है। पाकिस्तान के मशहूर अखबार डॉन में जो हाल ही में हुआ,  उसने पूरे मीडिया जगत को सोचने पर मजबूर कर दिया।

एक सीधी-सादी कारोबारी खबर, जिसमें गाड़ियों की बिक्री के आँकड़े दिए गए थे, अचानक सोशल मीडिया पर मज़ाक का विषय बन गई। वजह सिर्फ इतनी थी कि समाचार के आखिर में वो लाइन जस की तस छप गई, जो दरअसल किसी एआई सिस्टम से बात करते वक्त लिखी जाती है। आख़िरी पैराग्राफ में साफ़ नज़र आ रहा था कि रिपोर्ट तैयार करते हुए कोई पूछ रहा था कि क्या ये ड्राफ्ट पहले पन्ने के लिये ठीक है या इसे थोड़ा और बेहतर बनाया जाए।

कभी-कभी एक छोटी सी चूक पूरे पेशे की साख पर सवाल खड़े कर देती है। हाल ही में जो हुआ, उसने साफ़ दिखा दिया कि अगर पत्रकार और अखबार अपनी ज़िम्मेदारी से आँख चुराएँगे, तो फिर समाचार नहीं, सिर्फ़ शोर बचेगा। आज के दौर में जहाँ हर तरफ़ टेक्नोलॉजी का दौर है, लेकिन मशीन पर आँख मूँदकर भरोसा कर लेना सबसे बड़ी गलती है। मदद लेना गुनाह नहीं, दिमाग़ बंद कर देना गुनाह है।

असली बात ये है कि आज हर कोई किसी-न-किसी रूप में एआई का इस्तेमाल कर रहा है। अब मान लेते हैं कि किसी रिपोर्टर ने किसी एआई टूल से शुरुआती ड्राफ़्ट ले लिया। ये कोई अपराध नहीं। हम सब लेते हैं। कुछ लोग सुबह का मौसम जानने के लिए लेते हैं, कुछ लोग दफ़्तर की मेल ठीक करवाने के लिए। कोई भी पत्रकार चाहे जितना बड़ा हो, आजकल समय बचाने के लिए किसी-न-किसी टूल का सहारा लेता ही है। लेकिन यहाँ सवाल ये नहीं कि मदद ली या नहीं। सवाल ये है कि मदद लेकर अपनी पहचान खो दी गई। आखिरी टच, आखिरी निगाह, आखिरी दिमाग, ये सब कहाँ ग़ायब हो गए? इसमें शर्म या हिचकिचाहट की कोई वजह नहीं। दिक्कत तब शुरू होती है जब इंसान अपना हुनर, अपनी निगाह और अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह टेक्नोलॉजी को सौंप देता है और समझता है कि बस, मशीन ने दे दिया तो वह सच्चाई ही होगी। और जब ये गलती आम लोग करते हैं, तब भी समझ में आता है कि चलो, वो पेशेवर नहीं। लेकिन जब इतना बड़ा अखबार वही चूक दोहरा दे, तब सवाल उठता है, आखिर ये कैसा काम चल रहा है?

जो गलती हुई, वह साधारण नहीं थी। एक ऐसी जानकारी को बिना परखे छाप देना, जिसे एक मामूली जाँच भी पकड लेती, ये पेशे की बुनियादी समझ की कमी दिखाती है। ये कोई छोटी साइट नहीं थी, न ही कोई शौकिया ब्लॉगर। ये वही मीडिया है जो खुद को ‘विश्वसनीय’, ‘प्रामाणिक’ और न जाने क्या-क्या कहता है। पर जब बात आई असलियत की, तो तथ्य जाँच का सबसे पहला कदम भी गायब मिला। ये सोचने लायक है कि इतनी बड़ी संस्था में खबर को छापने से पहले किसी ने एक बार भी रुककर ये क्यों नहीं सोचा कि जो लिखा जा रहा है, वो सच भी है या नहीं?

पत्रकारिता का असल मतलब मशीन की कॉपी-पेस्ट नहीं, बल्कि इंसान की समझ, उसकी जाँच-परख और उसकी सत्यता के प्रति ईमानदारी है। अगर वही गायब हो जाए तो पेशा सिर्फ़ एक औपचारिकता बनकर रह जाएगा। जो भी खबरें पब्लिश होती हैं, उनके पीछे दर्जनों लोगों की जिम्मेदारी होती है। रिपोर्टर, सब-एडिटर, प्रूफ़रीडर, पेज-इंचार्ज, और न जाने कौन-कौन। पर यहाँ ऐसा लगता है मानो जाते-जाते किसी ने एक नज़र भी नहीं डाली। अगर एक गलती किसी छोटे दफ्तर में हो जाती, तो चलो, माना जा सकता था कि स्टाफ कम था, वक़्त कम था। लेकिन यहाँ तो संसाधन भी हैं, अनुभव भी है, और प्रतिष्ठा तो सबसे बडी पूँजी है। फिर भी गलती सीधे-सीधे सामने आ गई।

यह बात समझनी चाहिए कि एआई से लिए गए कंटेंट में कभी-कभी तथ्यों का गड़बड़ाना आम बात है। ये टूल्स तेज़ हैं, चतुर हैं, लेकिन सच की गहराई समझने में अब भी इंसान की बराबरी नहीं कर सकते। और जो लोग एआई को जादू समझकर उस पर आँख मूँद लेते हैं, वो खुद को ही धोखे में रखते हैं। अगर भविष्य में पत्रकारिता को बचाना है तो मशीन से काम लेना ठीक है, पर मशीन के भरोसे पेशे की साख नहीं छोड़ी जा सकती। हर जानकारी को परखना ज़रूरी है, हर वाक्य को समझना ज़रूरी है, और हर तथ्य को दोबारा तौलना ज़रूरी है। ये काम एआई नहीं करेगा, ये काम सिर्फ़ इंसान ही कर सकता है।

अगर कोई इतना बड़ा अखबार किसी एआई जनरेटेड गलत जानकारी को बिना जाँच छाप देता है, तो ये संकेत है कि अंदर कहीं न कहीं काम करने की रफ़्तार तो तेज़ हो गई है, पर गुणवत्ता की पकड़ ढीली पड़ रही है। क्या इतनी बड़ी मशीनरी में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं था जो ये समझ सके कि ये तथ्य संदिग्ध हैं? क्या किसी संपादक ने एक बार भी ये सोचने की ज़रूरत नहीं समझी कि पाठक की आँखें सिर्फ़ पढ़ने के लिए नहीं, परखने के लिए भी होती हैं?

यह सोशल मीडिया पर चुटकियों की भरमार बन गया। X पर अरफा खान नाम की एक यूज़र ने स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए कहा, “Dawn really outdid themselves.. they used ChatGPT to write the article and forgot to delete the prompt from the final draft. Level चैटजीपीटी से लेख लिखा है और अंत में उस एआई की कमांड तक नहीं हटाई।” पूर्व मंत्री शिरीन मज़ारी ने भी ट्वीट किया, “कम-से-कम आख़िरी पैराग्राफ़ तो हटा देते — कुछ साख तो बच जाती।” और पत्रकार मुईद पिरज़ादा ने तीखा लिखा, “OMG! Dawn? You need Intelligence to use AI।” कुछ लोगों ने सीधे अखबार की एथिक्स पर सवाल उठाया। एक यूज़र ने लिखा, “Imagine lecturing others about ‘ethics in media’ while publishing AI-generated articles yourself … The mask has slipped, and the hypocrisy is showing.”

मिलिंद खंडेकर नाम के एक यूज़र ने इस त्रुटि को और साफ़ शब्दों में बयां किया: “ChatGPT has started making newspapers. In Dawn की ख़बर के अंत में एआई पूछ रहा है कि उसे front-page version देना चाहिए? मतलब पूरी खबर एआई ने लिखी। Use AI, but also use your brain।” एक और यूज़र ने लिखा, “Pakistan की नंबर-1 अंग्रेज़ी अखबार डॉन ने चैटजीपीटी-सहायता वाली ख़बर छापी और एआई की क्लोज़िंग लाइन को भी नहीं हटाया — बिलकुल बेसिक एडिटिंग भी मिस।” इतना ही नहीं — मिर्ज़ा शाहज़ाद अकबर नाम के एक ज़िम्मेदार हस्ती ने भी X पर सवाल खड़े किए कि “एआई का इस्तेमाल हो रहा है, पर उन लोगों को एआई को सही तरीके से एडिट करना नहीं आता?”

सोशल मीडिया पर यह मुद्दा सिर्फ मजाक से आगे जा कर एक गंभीर चर्चा बन गया है — “क्या बड़े अखबारों में एआई इतना घुस गया है कि संपादकीय निगरानी कहीं खो सी गई है?” इसे लेकर ना सिर्फ आम लोग नाराज हैं, बल्कि पत्रकार अपने ही पेशे की गरिमा बचाने के लिए चिंता जता रहे हैं। इस गलती ने यह भी सवाल खड़ा किया है कि क्या टेक्नोलॉजी का उपयोग करने वाले न्यूज रूमों में जिम्मेदारी और पारदर्शिता कहीं पीछे छूट रही है।

आज लोग अखबार इसलिए पढ़ते हैं क्योंकि उन्हें भरोसा होता है कि यहाँ जो छपेगा, वो दुनिया की सच्चाई का हिस्सा होगा। अगर वही भरोसा दरकने लगे, तो फिर डिजिटल शोर और अफ़वाहों के बीच अखबार की जगह कौन बचाएगा?  पत्रकारिता की जड़ें तभी मज़बूत रहेंगी जब इंसान अपने विवेक को मशीन से ऊपर रखेगा। वरना कल को कोई भी एआई कुछ भी लिख देगा और हम उसे ‘खबर’ कहकर छाप देंगे। इस पेशे का वजूद ही खत्म हो जाएगा।

इसलिए बात साफ़ है, एआई का इस्तेमाल करो, जितना चाहे करो। मदद लो, ड्राफ्ट बनाओ, समय बचाओ। लेकिन आखिरी फैसला हमेशा इंसान की नज़र से ही गुजरे। मशीन सिर्फ़ औज़ार है, दिमाग़ तो तुम्हें ही लगाना पड़ेगा। और अगर इतने बड़े मीडिया हाउस इस बुनियादी बात को नहीं समझ पा रहे, तो फिर सवाल सिर्फ़ एक नहीं, सौ खड़े हो जाते हैं। पत्रकारिता अगर इसी तरह चलती रही, तो सच कहीं पीछे छूट जाएगा और बाकी सब सिर्फ़ दिखावा रह जाएगा।

सोशल मीडिया पर हो रही भारी आलोचना के बाद डॉन ने अपनी इस चूक के लिए माफी मांगी है। अखबार ने स्वीकार किया है कि एआई से एडिट की गई खबर छपना उनकी एआई नीति का उल्लंघन है और इस मामले की पूरी जांच की जा रही है।

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Journalist, News Writer, Sub-Editor

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