पूर्व गृह मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता शिवराज पाटिल का 90 वर्ष की आयु में लातूर स्थित उनके आवास ‘देवघर’ में आज निधन हो गया। वे पिछले कुछ समय से स्वास्थ्य समस्याओं के चलते घर पर ही उपचार ले रहे थे। सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली, जिसके बाद पूरे राजनीतिक जगत में शोक की लहर फैल गई।
शिवराज पाटिल का जन्म 12 अक्टूबर 1935 को महाराष्ट्र के चाकुर गांव में हुआ था। साधारण ग्रामीण परिवार से आने वाले पाटिल ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा चाकुर और लातूर में प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई पूरी की और कुछ समय तक वकालत भी की। छात्र राजनीति से शुरू हुई उनकी दिलचस्पी धीरे-धीरे उन्हें सक्रिय राजनीति की ओर ले गई। स्थानीय निकायों के चुनाव से लेकर आगे वे नगर परिषद में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ संभालते रहे और यहीं से उनका नेतृत्व उभरकर सामने आया।
राजनीतिक रूप से उनके करियर का वास्तविक विस्तार तब शुरू हुआ जब वे महाराष्ट्र विधानसभा के लिए चुने गए। विधायक रहते हुए उन्होंने विधानसभा के डिप्टी स्पीकर और विभिन्न समितियों के प्रमुख के रूप में काम किया। उनकी कार्यशैली शांत, अनुशासित और बेहद व्यवस्थित मानी जाती थी, जिसने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में पहचान दिलाई। 1980 में वे पहली बार लातूर से लोकसभा के लिए चुने गए और इसके बाद लगातार सात बार संसद पहुंचे। वे उन नेताओं में गिने जाते हैं जिन्होंने दो दशक से ज्यादा समय तक बिना किसी व्यवधान के लोकसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
उनका सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक दौर तब आया जब वे 1991 में लोकसभा स्पीकर बने। यह पद उन्होंने 1996 तक संभाला। उनके कार्यकाल को संतुलित और शालीन संचालन के लिए सराहा गया। बाद में वे केंद्र सरकार में कई मंत्रालयों के राज्य मंत्री भी रहे, जिनमें रक्षा, वाणिज्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे विभाग शामिल थे।
2004 में UPA सरकार बनने पर उन्हें केंद्रीय गृह मंत्री बनाया गया। आतंकवाद, आंतरिक सुरक्षा और संवेदनशील राष्ट्रीय मुद्दों की चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारियाँ उन्होंने संभालीं। हालांकि 26/11 मुंबई हमलों के बाद उनकी नीतियों पर आलोचना बढ़ी और उन्होंने नैतिक जवाबदारी लेते हुए गृह मंत्री पद छोड़ दिया। इसके बाद उन्हें पंजाब का राज्यपाल और चंडीगढ़ का प्रशासक नियुक्त किया गया, जहाँ 2010 से 2015 तक उन्होंने अपनी सेवाएँ दीं।
व्यक्तिगत रूप से शिवराज पाटिल सादगी, अनुशासन और बौद्धिक गहनता के लिए जाने जाते थे। मराठी, हिंदी और अंग्रेजी पर उनकी अच्छी पकड अधिकार था। वे नियमित रूप से पढ़ने-लिखने वाले नेता थे और सार्वजनिक जीवन में गरिमा बनाए रखने के लिए प्रसिद्ध थे। उनके परिवार में एक बेटा, बहू और दो पोतियां हैं। उनके निधन को भारतीय राजनीति में एक बड़ी क्षति माना जा रहा है, क्योंकि वे पिछले कई दशकों से एक प्रभावशाली और अनुभवी आवाज बने हुए थे।
Subscribe Deshwale on YouTube

