महाराष्ट्र की चर्चित लाडकी बहिन योजना में हुआ बड़ा फर्जीवाड़ा राज्य की राजनीति और प्रशासन दोनों के लिए झटका साबित हुआ है। विधानसभा में हुए खुलासे के बाद सरकार ने खुद स्वीकार किया कि योजना के क्रियान्वयन में गंभीर अनियमितताएँ हुई हैं और हजारों ऐसे लोगों को मासिक आर्थिक सहायता मिलती रही, जो योजना की मूल पात्रता शर्तों पर खरे ही नहीं उतरते थे।

इस योजना का उद्देश्य केवल उन महिलाओं को ₹1,500 की मासिक सहायता देना है, जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं और सरकार द्वारा तय मानदंडों को पूरा करती हैं। लेकिन जाँच रिपोर्टों और डेटा पुनरीक्षण ने पूरी व्यवस्था की पोल खोल दी। सरकार ने माना कि करीब 14,298 पुरुष, जो किसी भी स्थिति में इस योजना के पात्र नहीं थे, उन्हें भी यह राशि महीनों तक मिलती रही। यह बात अपने-आप में दर्शाती है कि सत्यापन प्रक्रिया कितनी लापरवाही से की गई थी। इतना ही नहीं, कई ऐसी महिलाओं के नाम भी सूची में शामिल मिले जो योग्यता के किसी भी मानदंड को पूरा नहीं करती थीं। कुछ नाम तो ऐसे थे जिनके दस्तावेज़ अधूरे या गलत थे, फिर भी उनकी फाइलें पास कर दी गईं।

इस व्यापक गड़बड़ी का आर्थिक असर भी कम नहीं है। सरकार ने स्वीकार किया कि इस फर्जीवाड़े के कारण राज्य को लगभग ₹35 करोड़ का सीधा नुकसान हुआ है। यह राशि उन योग्य महिलाओं को मिलनी चाहिए थी, जिनके लिए यह योजना बनाई गई थी। लेकिन अपात्र लाभार्थियों को भुगतान होते रहने से न केवल सरकारी धन की बर्बादी हुई, बल्कि योजना की मूल भावना को भी ठेस पहुँची।

अब सरकार ने अपात्र लाभार्थियों से राशि वसूलने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। विभागीय स्तर पर नोटिस जारी किए जा रहे हैं और जिन पुरुषों तथा अपात्र महिलाओं ने गलत तरीके से लाभ उठाया है, उनसे पूरी रकम वापस लेने की तैयारी है। इसके साथ ही इस बात की भी जाँच चल रही है कि यह गड़बड़ी केवल तकनीकी खामी थी या फिर इसमें किसी स्तर पर जानबूझकर की गई धांधली शामिल थी।

पुनरीक्षण के दौरान यह भी सामने आया कि लाखों आवेदन ऐसे थे जिनमें पात्रता संबंधी शर्तें अधूरी थीं—कहीं आय का प्रमाण गलत था, कहीं उम्र मेल नहीं खाती थी, कहीं निवास दस्तावेज़ संदिग्ध थे, और कई मामलों में एक ही व्यक्ति के नाम से दो-दो आवेदन तक मंजूर कर दिए गए थे। इससे प्रशासनिक निगरानी की कमी खुलकर सामने आ गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि सामाजिक कल्याण योजनाओं में डेटा सत्यापन और तकनीकी निगरानी को मजबूत किए बिना इस तरह की समस्याएँ बार-बार सामने आती रहेंगी।

इन घटनाओं के बाद सरकार ने पूरे सिस्टम का ऑडिट कराने का निर्णय लिया है। विभागीय मंत्री ने स्पष्ट किया है कि भविष्य में किसी भी योजना को लागू करने से पहले डेटा एनालिटिक्स, आधार-लिंकिंग और क्रॉस-वेरिफिकेशन जैसे कदम अनिवार्य किए जाएंगे, ताकि फर्जी लाभार्थियों की पहचान तुरंत हो सके। सरकार यह भी विचार कर रही है कि हर आवेदन को मंजूरी देने से पहले तीन-स्तरीय जाँच अनिवार्य की जाए, जिसमें डिजिटल सत्यापन, स्थानीय स्तर का फील्ड वेरिफिकेशन और अंतिम अनुमोदन एक ही पोर्टल पर एकीकृत हो।

लाडकी बहिन योजना को महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का बड़ा कदम माना जाता है, लेकिन इस घोटाले ने दिखा दिया कि मजबूत निगरानी और सही कार्यान्वयन के बिना कोई भी अच्छी योजना व्यर्थ हो सकती है। अब नजर इस बात पर है कि सरकार इस गड़बड़ी को ठीक करने के लिए किस गति से कदम उठाती है और क्या यह योजना फिर से अपने मूल उद्देश्य को प्रभावी रूप से पूरा करने की दिशा में लौट पाएगी।

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