सोचिए अगर एक दिन गूगल को अपना क्रोम ब्राउज़र बेचना पड़े… और उसे खरीदने के लिए कतार में सबसे आगे खड़ा हो ओपनएआई, यानी वही कंपनी जिसने चैटजीपीटी बनाया। ऐसा लगेगा जैसे किसी हॉलीवुड टेक-थ्रिलर का क्लाइमैक्स चल रहा हो। लेकिन जनाब, ये कोई फिल्म नहीं, बल्कि एक रियल चर्चा है।
हाल ही में ओपनएआई के सीईओ सैम ऑल्टमैन से एक बड़ा ही दिलचस्प सवाल पूछा गया – “अगर गूगल को कभी क्रोम बेचना पड़े, तो क्या ओपनएआई उसे खरीदेगा?” ऑल्टमैन का जवाब था – “हां, हम खरीदना चाहेंगे।”
आखिर क्यों चाहिए ओपनएआई को क्रोम?
क्रोम सिर्फ एक ब्राउज़र नहीं है, ये अरबों लोगों का इंटरनेट का दरवाज़ा है। अगर ओपनएआई इसे ले लेता है, तो:
- ब्राउज़िंग में सीधे एआई को जोड़ा जा सकता है। मतलब चैटजीपीटी आपके साथ सर्च करेगा, ईमेल लिखेगा, कोडिंग में मदद करेगा।
- गूगल के ऑनलाइन एड और सर्च वाले दबदबे को टक्कर मिल सकती है।
- इंटरनेट यूज़ के तरीके को एआई-केंद्रित दिशा में मोड़ा जा सकता है।
सैम ऑल्टमैन ने डिटेल तो नहीं दी, लेकिन ये साफ हो गया कि ओपनएआई के इरादे बहुत बड़े हैं।
अगर क्रोम ओपनएआई के हाथ में चला गया तो क्या होगा?
- एआई से लैस ब्राउज़र: चैटजीपीटी सीधे ब्राउज़र का हिस्सा बन सकता है। सोचिए वेबपेज का सारांश, स्मार्ट फॉर्म भरना, लाइव रिसर्च – सबकुछ एआई से।
- प्राइवेसी की चिंता: क्या ओपनएआई आपकी ब्राउज़िंग हिस्ट्री से अपने एआई को ट्रेन्ड करेगा? इस पर खूब बहस हो सकती है।
- नया मुकाबला: गूगल सर्च बनाम एआई सर्च – एक नई जंग शुरू हो सकती है।
लेकिन क्या ये मुमकिन है?
देखिए, गूगल अपने क्रोम को ऐसे ही नहीं छोड़ेगा। अगर मजबूरी में भी बेचना पड़ा तो वो कानूनी लड़ाई में सालों निकाल देगा। और फिर ओपनएआई को मोटी रकम भी चाहिए होगी, क्रोम की वैल्यू अरबों डॉलर में हो सकती है।
लेकिन बात सिर्फ खरीदने की नहीं है – ऑल्टमैन की खुलकर दिलचस्पी दिखाना ये बताता है कि ओपनएआई इंटरनेट को फिर से परिभाषित करना चाहता है। चाहे क्रोम उनके पास आए या न आए, ब्राउज़िंग का भविष्य अब और ज्यादा स्मार्ट और एआई-फ्रेंडली होने जा रहा है।