थोड़े दिनों से चर्चा में आई इंडिगो ने अपनी बरसों की साख को सचमुच पानी में बहा दिया है। आए दिन खबरों, सामाजिक माध्यमों और बहसों में यही सवाल गूंज रहा है कि आज इंडिगो की कितनी उड़ानें देर से चलीं और किन कारणों से रद्द हुईं, तथा यात्रियों को क्या-क्या कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। कई यात्रियों ने अपने अनुभव साझा किए हैं, जैसे एक यात्री ने बताया कि उसकी प्रस्थान की उड़ान देर से चली और अब तक कोई स्पष्ट सूचना नहीं दी गई, न ही किसी ने समय बताने की कोशिश की। एक अन्य परिवार ने लिखा कि जब उन्हें देर से पता चला कि उनकी कनेक्टिंग उड़ान रद्द हो गई, तो वे दोबारा टिकट बदलने के लिए कतार में घंटों खड़े रहे, परंतु जानकारी देने वाला कोई नहीं मिला। कुछ लोगों ने यह भी कहा कि वे देर से विमान में सवार हुए, लेकिन उनके सामान की व्यवस्था नहीं हो पाई और उन्हें अपने सामान तक पहुंचने में भारी कठिनाई का सामना करना पड़ा।
यात्रियों की ओर से यह भी साझा किया गया कि देर और रद्दीकरण के कारण उन्हें अप्रत्याशित रूप से अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ा। कई लोगों को होटल में रात बितानी पड़ी, कई को स्थानीय परिवहन की व्यवस्था करनी पड़ी, और कुछ यात्रियों ने बताया कि उनके व्यवसाय या निजी कार्यक्रम पर सीधा असर पड़ा क्योंकि वे समय पर अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच पाए। एक यात्री ने बताया कि वह अपने परिवार के साथ छुट्टियों पर जा रहा था, लेकिन उड़ान देर से होने की वजह से उनका पूरा दिन हवाईअड्डे पर गुज़र गया और बच्चों में बेचैनी बढ़ गई।
देश की प्रमुख विमानन कंपनी कही जाने वाली इंडिगो इस समय ऐसी स्थिति में है जहाँ यात्रियों का भरोसा टूटने लगा है और हर दिन नई शिकायतें सोशल मीडिया पर तूफ़ान बनकर उठ रही हैं। पहले लोग इसका नाम सुनकर निश्चिंत हो जाते थे, अब वही लोग पूछ रहे हैं कि इंडिगो आखिर जा कहाँ रही है। देरी, अव्यवस्था, कर्मचारियों के बदले हुए व्यवहार और यात्रियों के साथ संवाद की कमी ने कंपनी की छवि को डगमगा दिया है। यह सब इतना बढ़ गया है कि कभी समय पर संचालन के लिए मशहूर कंपनी अब इंटरनेट पर व्यंग्य और नाराज़गी का विषय बन चुकी है।
इस अव्यवस्था की वजहें गहरी हैं और सिर्फ सतही संचालन की समस्या नहीं हैं। लगातार बढ़ती उड़ानों की संख्या, समय से पहले यात्रियों को नहीं बताई गई बदलाव सूचनाएँ, रखरखाव के लिए पर्याप्त समय न निकाल पाना और कर्मचारियों पर अत्यधिक दबाव, ये सब मिलकर एक ऐसी स्थिति बना रहे हैं जहाँ काम तो बढ़ना चाहता है, पर नींव उतनी मजबूत नहीं रही। विशेषज्ञों का कहना है कि कंपनी ने विस्तार तो कर लिया, लेकिन विस्तार को सँभालने के लिए ज़रूरी संसाधन और संयमित योजना उतनी तेज़ी से नहीं बढ़ाई। उसके ऊपर यात्रियों की बढ़ती उम्मीदें और सेवाओं की गिरती गुणवत्ता ने इस खाई को और चौड़ा कर दिया।
यात्रियों की शिकायतों में एक और बात लगातार सामने आती है—सम्मान की कमी। लोग बताते हैं कि देरी को लेकर प्रश्न पूछने पर स्टाफ का रवैया अनमना दिखता है, उत्तर अस्पष्ट मिलते हैं और कभी-कभी यात्रियों को घंटों तक बिना कारण बताए इंतज़ार कराया जाता है। यह व्यवहार किसी भी ब्रांड की शुचिता को चोट पहुँचाता है। लोग सिर्फ टिकट नहीं खरीदते, वे भरोसा खरीदते हैं, और यही भरोसा अब धीरे-धीरे टूट रहा है।
अब सवाल यह उठता है कि इस स्थिति को सुधारा कैसे जा सकता है। समाधान बहुत कठिन नहीं है, लेकिन इसके लिए ईमानदार इरादे की आवश्यकता है। सबसे पहले कंपनी को उड़ानों की संख्या और उपलब्ध संसाधनों के बीच संतुलन बनाना होगा। रखरखाव के लिए पर्याप्त समय, कर्मचारियों का बेहतर प्रशिक्षण और उनके कार्यघंटों का संतुलन करना अनिवार्य है। इसके साथ ही यात्रियों के साथ संवाद को तत्काल सुधारना होगा। देरी हो, परिवर्तन हो या तकनीकी समस्या—यात्रियों को वास्तविक कारण और समयसीमा तुरंत बताना ही वह कदम है जो तनाव को आधा कर देता है।
दूसरा बड़ा सुधार यह हो सकता है कि कंपनी शिकायतों को औपचारिक प्रक्रिया में न उलझाकर सीधे और तेज़ी से सुलझाए। लोग नाराज़ तब नहीं होते जब समस्या होती है—वे तब नाराज़ होते हैं जब समस्या को अनसुना किया जाता है। अगर कंपनी यात्रियों को यह महसूस करा दे कि उनकी बात सुनी जा रही है, तो माहौल काफी हद तक शांत हो सकता है।
यह भी स्पष्ट हो चुका है कि सिर्फ विज्ञापन अभियान या मार्केटिंग से कंपनी अपनी खोती प्रतिष्ठा वापस नहीं ला सकती। यात्रियों के सामने वास्तविक सुधार दिखना ही इसकी प्रतिष्ठा को वापस खड़ा कर सकता है। अभी लोग तंज़ कसते हुए पूछ रहे हैं कि इंडिगो की उड़ानें भले आसमान में हों, पर प्रबंधन का नियंत्रण आखिर कहाँ चला गया है। यह सवाल तब तक उठता रहेगा जब तक कंपनी ठोस बदलाव नहीं करती। कुछ सुधार शुरू हुए हैं, पर गति अभी भी धीमी मानी जा रही है।
इंडिगो अभी भी देश की सबसे बड़ी विमानन कंपनी है, लेकिन आकड़ों से ज़्यादा जनता की भावना मायने रखती है। यदि कंपनी ने इन चेतावनी संकेतों को गंभीरता से नहीं लिया, तो यात्रियों का भरोसा धीरे-धीरे पूरी तरह टूट जाएगा। और यदि कंपनी समय रहते जाग जाए, तो वही लोग जिनकी शिकायतें आज सोशल मीडिया पर आग बन रही हैं, वही कल उसकी सबसे बड़ी ताकत भी बन सकते हैं।
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