नाम सिर्फ शब्द नहीं होते। ये पहचान, इतिहास और भावनाओं को व्यक्त करते हैं। यही वजह है कि IIT बॉम्बे को IIT मुंबई में बदलने की चर्चा ने लोगों का ध्यान खींचा। यह केवल बोर्ड पर लिखा नाम नहीं है, बल्कि यह सोचने की बात है कि यह नाम शहर, लोगों और शैक्षणिक दुनिया के लिए क्या प्रतिनिधित्व करता है।
IIT बॉम्बे की स्थापना 1958 में पवई में हुई थी। उस समय शहर का नाम आधिकारिक रूप से बॉम्बे था। इस नाम के साथ संस्थान ने धीरे-धीरे देश और दुनिया में अपनी प्रतिष्ठा बनाई। एलुमनी, शोधकर्ता और उद्योग जगत इसे IIT बॉम्बे के नाम से जानते हैं। यह नाम आज एक ब्रांड बन चुका है। हालांकि 1995 में शहर का नाम मुंबई कर दिया गया, लेकिन संस्थान ने अभी तक अपना पुराना नाम रखा। कई अन्य राष्ट्रीय संस्थानों ने भी ऐसा ही किया, क्योंकि पुराना नाम लंबे समय से मान्यता प्राप्त था।
हाल ही में महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सुझाव दिया कि IIT बॉम्बे का नाम बदलकर IIT मुंबई किया जाए। इस विचार के समर्थक कहते हैं कि जब शहर का नाम दुनिया में मुंबई के रूप में जाना जाता है, तो प्रमुख संस्थान का नाम भी उसी पहचान को दर्शाए। उनका कहना है कि यह बदलाव सांस्कृतिक गर्व और भाषा की सही पहचान का प्रतीक होगा।
दूसरी ओर, कई एलुमनी और शैक्षणिक विशेषज्ञ पुराने नाम को ही बनाए रखने के पक्ष में हैं। उनका मानना है कि बदलाव जरूरी नहीं है और इससे भ्रम भी पैदा हो सकता है। IIT बॉम्बे का नाम दुनिया में अपनी मजबूत छवि रखता है और इसे बदलना संस्थान की प्रतिष्ठा को प्रभावित कर सकता है। कुछ का कहना है कि शैक्षणिक संस्थानों के नाम पर राजनीतिक दबाव नहीं होना चाहिए और ऐसे फैसले संस्थान स्वयं ले।
इस बहस के पीछे एक गहरा सवाल भी है। क्या ऐतिहासिक नाम अपने अर्थ और यादों के कारण वैसे ही रहने चाहिए? या नाम समय के साथ बदलकर वर्तमान सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को दर्शाएं? यह सिर्फ IIT बॉम्बे का मुद्दा नहीं है। भारत के कई शहरों और संस्थानों ने इसी तरह की चर्चाओं का सामना किया है। हर पीढ़ी यह सोचती है कि नाम और पहचान का संबंध क्या होना चाहिए।
यह बहस इस बात की याद दिलाती है कि नाम केवल शब्द नहीं होते। वे हमारी विरासत, शहर की पहचान और हमारी भावनाओं का प्रतीक होते हैं। चाहे नाम IIT बॉम्बे रहे या IIT मुंबई, यह चर्चा यह दर्शाती है कि लोग अपने प्रतिष्ठित संस्थानों की पहचान को कितना महत्व देते हैं।
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