कभी दुनिया के नक्शे पर फ़िलिस्तीन एक अलग देश के रूप में दिखता था। फिर सीमाएँ बदलीं, संघर्ष बढ़ा और एक पूरे समुदाय की पहचान सवालों में घिर गई। दशकों से ये बहस सिर्फ़ राजनीति में ही नहीं, बल्कि लाखों लोगों के घरों, सड़कों और ज़िंदगियों में जारी है। अब ऑस्ट्रेलिया ने फ़िलिस्तीन को आधिकारिक रूप से एक अलग देश के रूप में मान्यता देने का ऐलान किया है। यह सिर्फ़ एक कूटनीतिक फैसला नहीं, बल्कि लंबे समय से जमे संघर्ष में एक नया मोड़ है।

पृष्ठभूमि: एक पुराना संघर्ष

इज़राइल और फ़िलिस्तीन का विवाद नया नहीं है। यह भूमि, पहचान और अधिकारों के लिए चला आ रहा दशकों पुराना संघर्ष है। संयुक्त राष्ट्र के कई प्रस्तावों के बावजूद, हल दूर ही दिखा। बीच-बीच में कुछ देशों ने फ़िलिस्तीन को मान्यता दी, तो कुछ ने तटस्थ रहना चुना। लेकिन ऑस्ट्रेलिया जैसे पश्चिमी देश का यह कदम खास महत्व रखता है, क्योंकि यह वैश्विक शक्ति समीकरण में बदलाव का संकेत देता है।

ऑस्ट्रेलिया ने यह कदम क्यों उठाया

ऑस्ट्रेलिया की सरकार का कहना है कि यह निर्णय शांति की दिशा में एक ठोस पहल है। वहां की जनता और मानवाधिकार संगठनों ने लंबे समय से फ़िलिस्तीनी लोगों के अधिकारों की वकालत की है। गाज़ा में जारी हिंसा और लगातार बिगड़ते हालात ने इस मुद्दे को और जरूरी बना दिया। इसके अलावा, यह कदम ऑस्ट्रेलिया को उन देशों की पंक्ति में खड़ा करता है जो दो-राष्ट्र समाधान को आगे बढ़ाना चाहते हैं।

इज़राइल और बाकी दुनिया की प्रतिक्रिया

इस घोषणा के बाद इज़राइल ने नाराज़गी जताई। उनका कहना है कि इस तरह की मान्यता से बातचीत की राह मुश्किल हो सकती है। वहीं, कई अरब और एशियाई देशों ने ऑस्ट्रेलिया के इस फैसले का स्वागत किया। यूरोप और अमेरिका में इस पर मिश्रित प्रतिक्रिया देखने को मिली। कुछ का मानना है कि यह कदम शांति प्रक्रिया को गति दे सकता है, जबकि अन्य को डर है कि इससे तनाव और बढ़ेगा।

आम फ़िलिस्तीनी के लिए इसका मतलब

फ़िलिस्तीन के आम लोगों के लिए यह महज कागज़ पर लिखा फैसला नहीं है। यह उनके लिए पहचान और अस्तित्व की एक झलक है। दशकों से विस्थापित हुए, हिंसा और आर्थिक संकट झेल रहे लोग उम्मीद कर रहे हैं कि ऐसे अंतरराष्ट्रीय फैसलों से उनकी आवाज़ दुनिया तक पहुंचेगी। हालांकि, वे यह भी जानते हैं कि सिर्फ़ मान्यता से उनकी रोज़मर्रा की मुश्किलें तुरंत खत्म नहीं होंगी।

भारत ने हमेशा फ़िलिस्तीन और इज़राइल, दोनों के साथ संबंध बनाए रखे हैं। ऑस्ट्रेलिया का यह कदम भारत के लिए भी एक संकेत है कि बदलते अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में संतुलन बनाना कितना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। भारतीय कूटनीति को आने वाले समय में इस फैसले के असर को ध्यान में रखना होगा।

यह फैसला एक शुरुआत है, मंज़िल नहीं। फ़िलिस्तीन को मान्यता देना आसान था, लेकिन वास्तविक शांति और स्थिरता लाना कठिन होगा। ज़रूरी है कि बातचीत, भरोसे और समझौते की राह पर आगे बढ़ा जाए। वरना यह मान्यता भी कई पुराने वादों की तरह अधूरी रह जाएगी।

ऑस्ट्रेलिया का फ़िलिस्तीन को मान्यता देने का कदम इतिहास में दर्ज होगा। यह उन लाखों लोगों के लिए आशा का एक छोटा लेकिन अहम संकेत है जो अपने वतन और पहचान के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अब देखना यह है कि क्या दुनिया इस छोटे कदम को बड़े बदलाव में बदल पाती है, या यह भी सिर्फ़ कूटनीति के पन्नों में सीमित रह जाएगा।

Share.
Leave A Reply

Exit mobile version