भारत में रक्त संबंधों में विवाह, जैसे चचेरे या ममेरे भाई-बहनों के बीच विवाह, कई समुदायों में सदियों पुरानी परंपरा है। इसे पारिवारिक एकता, सामाजिक स्थायित्व और संपत्ति की सुरक्षा के लिए सही माना जाता है। लेकिन अब चिकित्सा विज्ञान यह स्पष्ट कर चुका है कि ऐसी शादियों से बच्चों में गंभीर आनुवंशिक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। यह लेख इसी विषय पर वैज्ञानिक तथ्यों, विशेषज्ञों की राय, सामाजिक संदर्भ और समाधान के उपायों के साथ केंद्रित है।

वैज्ञानिक आधार

रक्त संबंधों में विवाह को मेडिकल टर्म में “कंसैंग्यूनियस मैरिज” कहा जाता है। इसका अर्थ है कि शादी दो ऐसे लोगों के बीच हुई है जो जैविक रूप से आपस में जुड़े हुए हैं। जब दो करीबी रिश्तेदार शादी करते हैं, तो उनके डीएनए में मौजूद दोषपूर्ण जीन की एक जैसी कॉपी बच्चे को मिलने की संभावना बढ़ जाती है। इससे ऑटोसोमल रिसेसिव बीमारियाँ हो सकती हैं, जिनमें गंभीर परिणाम देखने को मिलते हैं।

प्रमुख बीमारियाँ जो इससे जुड़ी होती हैं

  • थैलेसीमिया: एक रक्त विकार, जिससे हर साल भारत में लगभग 10,000 बच्चे प्रभावित होते हैं।
  • सिकल सेल एनीमिया: विशेषकर आदिवासी क्षेत्रों में प्रचलित।
  • सिस्टिक फाइब्रोसिस: यह रोग श्वसन और पाचन प्रणाली को प्रभावित करता है।
  • मानसिक विकास में बाधा, जन्मजात हृदय रोग, डायबिटीज और कुछ कैंसर भी इसके जोखिम में शामिल माने गए हैं।

एक अध्ययन के अनुसार, रक्त संबंधी विवाहों से जन्म लेने वाले बच्चों में मानसिक और शारीरिक विकारों की संभावना 2 से 3 गुना अधिक होती है।

भारत में सामाजिक स्थिति

भारत में 15-20% विवाह रक्त संबंधों में होते हैं। दक्षिण भारत, राजस्थान, और कुछ मुस्लिम समुदायों में यह परंपरा आज भी व्यापक है। इसके पीछे प्रमुख कारण होते हैं – पारिवारिक संपत्ति का नियंत्रण, दहेज से बचाव, और आपसी समझ को प्राथमिकता देना। परंतु स्वास्थ्य के क्षेत्र में इसके प्रतिकूल प्रभावों को नजरअंदाज करना अब कठिन होता जा रहा है।

विशेषज्ञों की राय

डॉ. श्रुति बजाज, वरिष्ठ जेनेटिक विशेषज्ञ, मुंबई
“यदि परिवार में कोई आनुवंशिक बीमारी का इतिहास है, तो शादी से पहले जेनेटिक काउंसलिंग करवाना जरूरी है। इससे यह पता चलता है कि संतान को बीमारी का खतरा कितना है।”

डॉ. ज़ाला, अंकुरा हॉस्पिटल, पुणे
“मेरे पास कई ऐसे जोड़े आते हैं जो पहले बच्चे के जन्म के बाद समस्या का सामना करते हैं। लेकिन जागरूकता बढ़ रही है – अब लोग विवाह से पहले जांच करवाने लगे हैं।”

डॉ. अनिल कुमार, जेनेटिक्स सलाहकार, दिल्ली
“ग्रामीण क्षेत्रों में जेनेटिक स्क्रीनिंग अब भी एक चुनौती है। हमें मेडिकल सिस्टम को ज़मीनी स्तर तक ले जाने की ज़रूरत है।”

सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य

  • तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में चचेरे भाई-बहन के विवाह पारंपरिक हैं।
  • राजस्थान और उत्तर भारत में संपत्ति बचाने के लिए यह प्रणाली बनी हुई है।
  • मुस्लिम समुदाय में भी कई जगहों पर यह परंपरा मजबूत सामाजिक संरचना का प्रतीक मानी जाती है।

परंतु आज इन परंपराओं से जुड़े स्वास्थ्य जोखिम पहले की तुलना में कहीं अधिक स्पष्ट और घातक हो चुके हैं।

समाधान और रोकथाम के उपाय

उपायविवरण
जेनेटिक काउंसलिंगशादी से पहले संभावित आनुवंशिक बीमारियों की जांच और सलाह।
शिक्षा और जागरूकतास्कूलों, कॉलेजों और पंचायतों में जानकारी फैलाना।
अंतर-समुदाय विवाहरक्त संबंधी विवाह से बचने का एक व्यावहारिक तरीका।
सरकारी नीतियाँस्क्रीनिंग सुविधाओं को सब्सिडी या मुफ्त बनाना।
NGO और सामाजिक संगठनसमुदाय स्तर पर काम कर रहे संगठनों से सहयोग।

जेनेटिक काउंसलिंग का महत्व

जेनेटिक काउंसलिंग एक विशेषज्ञ प्रक्रिया है जिसमें माता-पिता के जीन और पारिवारिक इतिहास की जाँच की जाती है। उदाहरण के लिए, यदि दोनों माता-पिता थैलेसीमिया के वाहक हैं, तो उनकी संतान को थैलेसीमिया होने की 25% संभावना होती है। यह जांच विवाहित जोड़ों को या विवाह-पूर्व जोड़ों को एक सूचित निर्णय लेने में सहायता करती है।

एक सच्ची कहानी

मुंबई के एक परिवार में चचेरे भाई-बहन के विवाह से पहला बच्चा थैलेसीमिया मेजर के साथ पैदा हुआ। लगातार रक्त चढ़ाना और महंगा इलाज एक मानसिक और आर्थिक बोझ बन गया। इस अनुभव के बाद, परिवार ने जेनेटिक काउंसलिंग कराई और दूसरे बच्चे के जन्म से पहले स्क्रीनिंग की, जिससे दूसरा बच्चा स्वस्थ पैदा हुआ। यह उदाहरण बताता है कि समय रहते सही जानकारी और निर्णय कैसे पूरे परिवार का भविष्य बदल सकते हैं।

अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य

पाकिस्तान में 50% से अधिक विवाह रक्त संबंधों में होते हैं, और वहां जन्मजात विकारों की दर भारत से अधिक है। इसके विपरीत, पश्चिमी देशों में जैसे अमेरिका और ब्रिटेन में ऐसे विवाह बहुत कम होते हैं, लेकिन जेनेटिक स्क्रीनिंग और काउंसलिंग बहुत आम है। भारत को इससे प्रेरणा लेते हुए नीतियों को बेहतर बनाना चाहिए।

निष्कर्ष

रक्त संबंधों में विवाह एक सांस्कृतिक परंपरा है, लेकिन अब इसके वैज्ञानिक और स्वास्थ्य पक्ष को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। बच्चों में थैलेसीमिया, सिकल सेल एनीमिया और मानसिक विकारों जैसे गंभीर रोगों की संभावना बढ़ जाती है। समाधान स्पष्ट हैं – जेनेटिक काउंसलिंग, शिक्षा, और विवाह की पारदर्शिता।
अब समय है कि परंपरा और विज्ञान के बीच संतुलन बनाते हुए एक स्वस्थ और जागरूक समाज की दिशा में कदम बढ़ाया जाए।

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