भारत की जेलों में सुधार की दिशा में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि जिन कैदियों ने तय अवधि की उम्रकैद पूरी कर ली है, उन्हें तुरंत रिहा किया जाए। अब इस प्रक्रिया में किसी अलग माफी आदेश की जरूरत नहीं होगी। यह मुद्दा हाल ही में नीतीश कटारा केस और सुकदेव यादव की रिहाई को लेकर चर्चा में आया, लेकिन फैसला सभी ऐसे कैदियों पर लागू होगा।
पहले कैसी थी प्रक्रिया
पहले उम्रकैद के मामलों में 14 साल की सजा पूरी होने के बाद कैदी को रिहाई के लिए अपील करनी पड़ती थी। इसके बाद राज्य सरकार रिव्यू बोर्ड से सलाह लेती थी। ट्रायल कोर्ट के जज की सहमति भी जरूरी होती थी। कैदी के आचरण का मूल्यांकन किया जाता था, और अगर अवधि तय नहीं होती तो वह पूरी जिंदगी जेल में रह सकता था। इस प्रक्रिया में फाइलों की देरी और प्रशासनिक अड़चनों से रिहाई में अक्सर महीनों या सालों की देरी होती थी।
सुप्रीम कोर्ट का नया आदेश
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने स्पष्ट किया कि तय अवधि की सजा पूरी करने वाले कैदियों की रिहाई में अब किसी अतिरिक्त आदेश की जरूरत नहीं है। माफी आदेश केवल आजीवन कारावास वाले मामलों में लागू रहेगा। कोर्ट ने राज्यों के गृह सचिवों को निर्देश दिया कि ऐसे कैदियों की पहचान तुरंत की जाए और अगर वे किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हैं तो तुरंत रिहा किया जाए। कोर्ट ने चेतावनी भी दी कि आदेश की अनदेखी होने पर जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई होगी।
राज्यों और जेल प्रशासन की जिम्मेदारी
इस आदेश की कॉपी सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण को भेजी जाएगी। राज्य और जिला स्तर पर भी इसकी जानकारी दी जाएगी। विधिक सेवा प्राधिकरण कैदियों की मदद करेगा ताकि रिहाई में अनावश्यक देरी न हो। जेल प्रशासन को निर्देश दिया गया है कि वे सजा की अवधि और रिहाई की तारीख का सही रिकॉर्ड रखें और समय पर कार्रवाई करें।
क्यों अहम है यह फैसला
यह फैसला न केवल कैदियों के अधिकारों को मजबूत करेगा, बल्कि जेलों पर अनावश्यक बोझ भी घटाएगा। अब ऐसे कैदी, जिन्होंने अपनी तय सजा पूरी कर ली है, उन्हें बिना किसी अतिरिक्त प्रक्रिया के बाहर आने का रास्ता मिलेगा। यह बदलाव न्याय व्यवस्था को तेज, पारदर्शी और मानवीय बनाएगा।

