तेलंगाना की पहचान बने गीत “जय जय हे तेलंगाना” के रचनाकार और प्रसिद्ध लोक कवि आंदे श्री (Ande Sri) का 64 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने सोमवार सुबह हैदराबाद में अंतिम सांस ली। उनके निधन से तेलुगु साहित्य और संस्कृति जगत में गहरा शोक फैल गया है।
आंदे श्री का जन्म तेलंगाना के वारंगल जिले के एक साधारण ग्रामीण परिवार में हुआ था। उनका असली नाम आंदे येल्लैया था। बचपन से ही वे गरीबी, सामाजिक असमानता और ग्रामीण जीवन की सच्चाईयों से परिचित थे। औपचारिक शिक्षा बहुत कम मिली, लेकिन लोकभाषा, गीत और कविताओं के प्रति उनकी गहरी रुचि थी। उन्होंने जीवन के अनुभवों को शब्दों में ढालना शुरू किया, और धीरे-धीरे वे तेलंगाना के जनकवि बन गए।
तेलंगाना राज्य के गठन के लिए चले लंबे आंदोलन में आंदे श्री ने अपनी कविताओं और गीतों से जनमानस को जागरूक किया। उनकी लेखनी में लोगों के संघर्ष, सपने और दर्द झलकते थे। उनका प्रसिद्ध गीत “जय जय हे तेलंगाना” आंदोलन के समय एक तरह का अघोषित राज्य गीत बन गया था। इस गीत ने लाखों लोगों में जोश भरा और तेलंगाना की एकता को नई ताकत दी।
जब 2014 में तेलंगाना को आधिकारिक रूप से एक अलग राज्य का दर्जा मिला, तब इस गीत को राज्य का आधिकारिक गीत (State Anthem) घोषित किया गया। इससे आंदे श्री का नाम इतिहास में अमर हो गया।
आंदे श्री केवल कवि नहीं, बल्कि लोककला के संवाहक थे। उन्होंने दर्जनों कविताएँ और लोकगीत लिखे, जो सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर आधारित थे। उनकी रचनाओं में गरीबों की पीड़ा, किसानों का संघर्ष, और तेलंगाना की धरती का गौरव प्रमुखता से दिखता है।
उनकी कविताएँ सरल भाषा में थीं, लेकिन उनमें गहरी भावनात्मक ताकत थी। यही वजह है कि आम लोग उनकी बातों से जुड़ गए।
आंदे श्री ने अपने गीतों के माध्यम से तेलुगु समाज में गहरी छाप छोड़ी। उन्हें कई सांस्कृतिक संस्थानों ने सम्मानित किया। तेलंगाना सरकार ने उन्हें राज्य गौरव पुरस्कार से भी नवाज़ा था।
उनकी लोकप्रियता सिर्फ राज्य तक सीमित नहीं रही — उन्होंने पूरे देश में यह साबित किया कि कविता और संगीत समाज को जोड़ने का सबसे प्रभावी माध्यम है।
वे बेहद सरल और विनम्र स्वभाव के व्यक्ति थे। प्रसिद्धि मिलने के बाद भी उन्होंने गाँव और लोकसंस्कृति से नाता कभी नहीं तोड़ा। वे अक्सर ग्रामीण इलाकों में जाकर युवाओं को प्रेरित करते थे कि अपनी भाषा और परंपरा पर गर्व करें।
सोमवार की सुबह उन्हें अचानक अस्वस्थ महसूस हुआ। परिवार ने तुरंत उन्हें हैदराबाद के गांधी अस्पताल ले जाया, जहाँ डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। बताया जा रहा है कि दिल का दौरा (हृदयाघात) उनकी मृत्यु का कारण था। वे लंबे समय से हाई ब्लड प्रेशर की समस्या से भी जूझ रहे थे।
उनकी मृत्यु की खबर फैलते ही साहित्यिक और राजनीतिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई। तेलंगाना के मुख्यमंत्री, कई मंत्री, और कवि-संस्थाओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। सोशल मीडिया पर हजारों लोगों ने लिखा —
“तेलंगाना की आत्मा ने आज अपनी आवाज़ खो दी।”
आंदे श्री का जीवन इस बात का प्रमाण है कि सच्ची कला किसी बड़े मंच की नहीं, बल्कि सच्चे दिल की देन होती है। उन्होंने बिना किसी औपचारिक शिक्षा के, अपने शब्दों से एक पूरे राज्य की पहचान गढ़ी।
उनका गीत “जय जय हे तेलंगाना” आने वाली पीढ़ियों को सदैव याद रहेगा।
उनकी यात्रा गाँव से शुरू हुई थी, लेकिन उन्होंने अपनी आवाज़ से एक पूरे राज्य को गौरवान्वित किया। उनकी विरासत आने वाले वर्षों तक तेलंगाना की संस्कृति, साहित्य और आत्मा में जीवित रहेगी।
“जय जय हे तेलंगाना” अब सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि आंदे श्री की अमर धरोहर है।
ये रहा आंदे श्री का रचित “जय जय हे तेलंगाना” गीत
जय जय हे तेलंगाना, जन जन का तू गान
मिट्टी तेरी सोने सी, अमर रहे पहचान
रक्त और परिश्रम से सींची धरती माँ
तेरे नाम पे गर्व करें, हर तेलंगाना वासी यहाँ
जय जय हे तेलंगाना, जय जय हे तेलंगाना
(गीत का मूल संस्करण तेलुगु भाषा में है, जिसे आंदे श्री ने लिखा और स्वरबद्ध किया था। ऊपर इसका हिंदी अनुवादात्मक अंश दिया गया है।)
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